बुधवार, 29 दिसंबर 2010

हनुमान भक्त मुसलमान

बिहार के अरवल में सोहसा गांव है वहां एक मुसलमान राम जानकी मंदिर का मुख्य पुजारी है। यह व्यक्ति हनुमान भक्त है। इसका नाम साकिद अहमद था लेकिन बाद में सदीक दास हो गया। 1949 से लगातार साकिद अहमद मंदिर में पूजा करता रहा है। इनका कहना है कि भगवान ने ही इसे ऐसा करने की प्रेरणा दी थी। इसे गीता और रामायण की भी जानकारी है। गांव में सदीक दास की बड़ी इज्जत है। धीरे धीरे साकिद हिन्दु धर्म की प्रवृत्त हो गया और सदीक दास कहलाने लगा। छह दशक से ज्यादा हो गए यह व्यक्ति हनुमत भक्ति में रमा हुआ है।

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

लहसुन भी बहुमूल्य है, सीमा पर तस्करी

नेपाल की सीमा पर लहसून की तस्करी का मामला सामने आया है। वैसे तो यह सीमा पर बहुमूल्य सामानों की तस्करी के लिए चर्चा में रहा है ऐसे में लहसून की तस्करी की बात क्यों उल्लेखनीय हो सकती है? बात केवल लहसून की तस्करी की नही है। इसके पीछे अर्थव्यवस्था की जो चौपट हालत दिखाई दे रही है वह बड़ा ही गंभीर है। तस्करों को लहसून में क्या सूझ गया कि इसका तस्करी करने लगे। जरा लहसून का भाव देखें 300रुपए प्रति किलोग्राम। लहसून है इसलिए पकड़ धकड़ की गुंजाइश भी कम ही है। तस्करों को मुनाफा चाहिए कोई स्टेटस नहीं। पैसा आना चाहिए इसलिए जो बिके वही सही। देश पर महंगाई की मार पड़ रही है। हाहाकार मचा है प्याज लहसून के लिए तो सोना चांदी हीरे जबाहरात और चरस-अफीम की जगह अगर लहसून से ही उतना मुनाफा मिल जाए तो फिर क्या है। इसलिए लहसून की तस्करी कर तस्करों के बल्ले बल्ले हैं।

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

मगध से गांधार तक

मगध विश्वविद्यालय का एक स्टडी सेंटर काबुल विश्वविद्यालय अफगानिस्तान में खुलेगा। ये एक अलग तरह की खबर है। इतिहास और भविष्य की बहुत कुछ चीजें दिख रही हैं।
आज मनमोहन बोले भष्टाचार पर। बिहार के नेताओं ने कांग्रेस के 83वें अधिवेशन में खूब हंगामा किया कल भी किया था और आज भी किया। कल जूतमपैजार हुआ था। आज पर्चे बांटे हैं। कहने के लिए तो ये लोग मुकुल वासनिक पर अंगुली उठा रहे थे लेकिन इससे क्या केन्द्रीय नेतृत्व दोषमुक्त हो जाता है। मुकुल वासनिक को भेजने वाले बच जाएंगे। कैसर ने बयान दिया था कि अगर कांग्रेस हारती है तो इसके जिम्मेदार कई लोग होंगे। उन्होंने कहा था किसी एक पर जिम्मेदारी क्यों। उनकी बातों से साफ था कि युवराज महारानी और मनमोहन भी हो घेरे में होंगे। जो भी महाधिवेशन खूब रही। पहले जब कांग्रेस के कार्यालय में आग लगायी जाती थी तो ये लोग कहते थे कि बहुत लोकप्रियता है अब महाधिवेश में हंगामा हुआ है तो कहते हैं दूसरी पार्टियों के कार्यालय में भी हुआ था । यह तो एक ट्रेंड विकसित हो गया है। मतलब साफ है कि कार्यकर्ताओं में अवगुण आ गए हैं नेताजी लोग तो बड़े अच्छे है। देखें कबतक हकीकत से भागते रहते हैं।
जमशेदपुर में किशोर वय में आत्महत्या की प्रवत्ति का एक अलग रूप सामने आया है। प्रतिलाख में 16 बच्चों की दर है जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिलाख 10 है।
बिहार में पुलिस की बहाली को लेकर पटना में हंगामा जारी है। आज लाठीचार्ज हुआ है। मुख्यमंत्री के जनता दरबार में ये लोग हंगामा करने पहुंचे थे और पहुंचना चाह रहे थे।
अर्जुन मुंडा की सरकार के 100 दिन पूरे हो गए।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

भिखारी ठाकुर की 123वीं जयन्ती

बिहार में चचरी पुल भी न्यूज बनने लगा है वो भी हेड लाइन के साथ 15 मिनट का प्रोग्राम बना लेते हैं लोग
कांग्रेस का 83वां राष्ट्रीय अधिवेशन चल रहा है। दिल्ली के बुराड़ी में अधिवेशन हैं इसलिए आम लोगों के आने जाने के रास्ते में परिवर्तन किया गया है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी ने संघ पर निशाना साधा है ताकि विपक्ष की एकता में ददार हो सके। लेकिन बड़ी बात ये है कि साल भर से इतना जरूर दिख रहा है कि कांग्रेस की राजनीति का केन्द्र विन्दु संघ बन गया है।
भिखारी ठाकुर की 123वीं जयन्ती है। भोजपुरी साहित्य के प्रणेता रहे हे नाटक लिखना और उसका मंचन करना अभिनय करना इन तीनों विधा के पारंगत थे। अच्छे साहित्यकार थे।

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

एक लाख के चेक और दर्द

पूरा का पूरा शीत सत्र कल यानि 13.12.10 तक नहीं चला मामला भ्रष्टाचार का 2जी स्पेक्ट्रम पर विपक्ष ने जीपीसी जांच की मांग थी।
कटिहार में जनार्दन सिग्रीवाल ने एक एक लाख के चेक बांटे। कटिहार जिले के 15 लोग दिल्ली के लक्ष्मीनगर हादसे में मारे गए थे उनके परिजनों को चेक दिया बिहार सरकार की ओर से। राज्य सरकार की नीति है जो लोग बाहर मजदूरी कर रहे हैं उनके आकस्मिक निधन पर एक लाख देगी सरकार। कई महिलाओं ने कह दिया कि जिन्दगी की कीमत एक लाख ही। शवाना की शादी कुछ दिन पहले हुई थी। पति के साथ कुछ ही दिन रही थी वो दिल्ली आ गया फिर हादसा हो गया। जया मसोमात के घर अब उसके अलावा और कोई नहीं बचा। बेट हादसे में मारा गया।
कटिहार के कोढा थाना में पासवान और नागमणि के खिलाफ 1995 में आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज था गैरजमानती वारंट जारी किया गया।
मंडा मिले हैं कृषिमंत्री पवार से सिचाई के एक हजार करोड़ नाकाफी बताया और राशि बढ़ाने का प्रस्वात किया।
राहुल गुलाटी मामले में 72 टुकड़े पर देहरादून के बार एसो. ने केस लड़ने से मना कर दिया। चार दिनों के पुलिस हिरासत में कल भेजे गए थे।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

गतिविधियां

शहादत दिवस के मौके पर नमन
भष्ट्राचार को लेकर सदन में हंगामा संसद में नही चली कार्रवाही। दोनॉं सदन ठप। सोनिया जेपीसी का जेपीसी के खिलाफ बयान। मीरा कुमार बीच का रास्ता निकालेंगी।
कमलेश सिंह को जमानत मिली है आय से अधिक संपत्ति के मामले में
झारखंड में पंचायतचुनाव का दूसरा चरण
नीतीश कुमार ने रविवार 12.12.10 को कहा है कि बहुत सारे पुलिस और दारोगा की बहाली करेंगे।
गिरिड़ीह-मधुपुर सवारी गाड़ी में लूट रात में
12.12.10 को विक्रमशिला में जीआरपी ने यात्रियों को पीटा था गहने भी लूटे थे 8 जवान निलंबितय़।
बेरमो सीसीएल का बंद खदान असुरक्षित चार बच्चे गिर गए उसमें पानी भरा था चारों मर गए।
लखीसराय में तीन महदलितें की हत्या
औरंगाबाद में 25 क्विंटल विस्फोटक बरामद
सोमवार 13.12.10 आज डीजीपी मुंगेर आए है ऋषिकुंड में 500 नक्सलियों के जुटने की खबर खुफिया विभाग ने दी जानकारी। मुंगेर के हिरणमार दियारा में ग्रमीण नक्सली मुठभेड़ में नक्सली मारे गए थे।
चिदंबरम को भी दिल्ली में बाहरी खास कर बिहारी से परेशानी शुरू हो गई हालांकि दिग्विजय की तरह ही कांग्रेसियों ने ही लुलिया दिया।

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

10बूथ पर मतदान बहिष्कार, कोई हिंसा नहीं, पहला चरण

बिहार विधानसभा का पहला चरण सम्पन्न हो गया। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान किसी तरह की कोई हिंसा नहीं हुई है। बूथ लूट की खबर भी नहीं है लेकिन एक बड़ी बात ये हुई कि चुनावी इतिहास में बिहार पहला ऐसा राज्य होगा जहां केवल 47 सीटों के चुनाव में 10 बूथों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार कर दिया। मतदान का बहिष्कार पंचायत या प्रखंड स्तर या गांव स्तर पर भी नहीं है बल्कि बूथ स्तर पर है। इसमें दोनों ही बातों हो सकती हैं। विकास का सरकार का दावा खोखला है या फिर आस पास विकास दिखा लेकिन जिन जगहों पर बिल्कुल नहीं दिखा वहां के लोगों ने वोट का बहिष्कार कर दिया। लेकिन अच्छी बात यह थी कि चुनाव में हिंसा के लिए जाना जाने वाला बिहार इसबार हिंसा से दूर रहा। अब नेतागण एक दूसरे को क्रेडिट और डिसक्रेडिट देते रहें लेकिन लोगों ने अपनी जिन्दगी की रक्षा कर ली है।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

कांग्रेस आरजेडी के गलबांही का इन्तजार करें

आज फिर राजद अपनी हालत पर आ गया। राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि कांग्रेस से नाता तोड़ना सबसे बड़ी भूल है। यह वही हथियार है जिसे कांग्रेस ने राहुल के मुंह से लोक सभा चुनाव में नीतीश के लिए इस्तेमाल किया था और आरजेडी की ओर जाने वाले मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा अपनी ओर टर्नअप कर लिया था। नीतीश ने उस समय सामान्य प्रतिक्रिया दी थी क्योंकि अगर कुछ प्रतिशत वोट अगर कांग्रेस को जाता है तो उनके लिए आसान ही होगा और कांग्रेस को एक ही संतोष था कि फजीहत तो हो ही चुकी है कुछ तो आ जाए। अब यही खेल रघुवंश प्र. सिंह ने किया है। वैसे जरा आरजेडी और कांग्रेस का इतिहास देखें-1997 में लालू की सरकार अल्पमत में आई उस समय कांग्रेस ने ही लालू की मदद की थी। कांग्रेस ने ही लालू की सरकार बचाई थी। उसके बाद 2000 में चुनाव हुए। आरजेडी और कांग्रेस ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर अलग अलग चुनाव प्रचार किया। सप्ताह भर के लिए नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन कांग्रेस ने समर्थन नहीं किया था। इसके बाद त्रिशंकु सरकार बनने की हालत हुई तो कोएलिशन सरकार बनी आरजेडी और कांग्रेस की मिलजुल कर। कांग्रेस ने जोरदार मलाई काटी। कांग्रेस के कुल 23 विधायक थे। जिसमें एक विधायक सदानन्द सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष पद लिया। बाकी बचे सभी 22 विधायक मंत्री बने थे। इसके बाद फिर 2005 के चुनाव के बाद नीतीश की सरकार बनी लेकिन गिर गई। कांग्रेस ने फिर से नौटंकी की जिसके चलते राष्ट्रपति शासन लगा और बूटा सिंह जिनकी लबली सिंह कथा प्रसिद्ध है, का शासन आया। अब इसके बाद लोकसभा चुनाव में चार सांसदों के साथ लालू जीते वो कोई पूर्व प्रधानमंत्री नहीं लेकिन उन्हें सदन में अगला बेंच दिया गया है। नीतीश कुमार कांग्रेस आरजेडी सांठ गाठ की बात शुरू से उछाल रहे हैं। इसबार फिर चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी अलग अलग प्रचार कर रहे हैं लेकिन रघुवंश सिंह के बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

बिहार विधानसभा चुनाव: बयानबाजी

बिहार में चुनाव सचमुच कई मायने में अहम हो चला है। राहुल गांधी ने 14 अक्टूबर को तीन सभाएं की और नीतीश पर कई सवाल दागे। इसबार राहुल के वार ओछे पड़े। बिहार में चुनावी भाषण का आधार उन्होंने मध्यप्रदेश में तैयार किया था। उन्होंने वहां अपने बयान में सिमी और संघ का मुद्दा उछाला था ताकि ये बिहार चुनाव में नेताओं के लिए मुद्दा बन जाए लेकिन ऐसा हो न सका। फिर उसी को आधार बना कर राहुल ने भी नीतीश पर नरेन्द्र मोदी को लेकर निशाना साधा। इससे पहले वे कहते रहे थे कि नीतीश का काम सही लेकिन गलत लोगों के साथ हैं। इसबार वे बोल रहे थे कि बिहार का विकास केन्द्र के पैसों की वजह से है। लालू और रामविलास ने भी कुछ हद तक संभलते हुए इस मुद्दे पर हामी तो की लेकिन अपना क्रेडिट लेकर। लेकिन 15 अक्टूबर को नीतीश ने इसका जबाव दे दिया। नीतीश ने मुख्यत दो मुद्दे उठाए। पहला कि जब जेडीयू बीजेपी सरकार बनी थी तो कुछ लोग अल्पसंख्यकों को बीजेपी के नाम से डराने का काम कर रहे थे, लेकिन इस गठबंधन में अल्पसंख्यकों के लिए जितना काम हुआ, पहले कभी नहीं हुआ। दूसरी बात थी कि बिहार को कोटे का ही पैसा मिला है अतिरिक्त कुछ नहीं। आपदाएं भी आईं फिर भी केन्द्र से अलग से कोई मदद नहीं मिली। और तो और इस बार नीतीश ने खुल कर कह दिया कि ‘दम है तो बिहार का फंड रोक कर दिखाए केन्द्र सरकार’। थोड़ा और पीछे चलते हैं। विरोधी दल साथ में राहुल भी पहले राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़ा करते थे, बाद में इस मुद्दे को छोड़ विकास कार्यों पर सवाल खड़ा करने लगे और इसबार उन्होंने नरेन्द्र मोदी का मुद्दा उठाया है। कांग्रेस के चुनाव प्रचार को जिस रूप में देखा जाय लेकिन एक बात तो साफ है कि अब भी कांग्रेस के पास बिहार में उम्मीदवार नहीं हैं जो जनता को लेकर दो कदम भी बढ़ सके। एक बात और जो नीतीश कुमार ने कहा है कि इसबार बिहार में एनडीए की सरकार बनती है तो केन्द्र में भी एनडीए की सरकार ही बनेगी। ये एक ऐसा मुद्दा दे दिया है कि जो एक भावात्मक स्थिति के रूप में ही देखी जा सकती है। ताकि ये लोग चर्चा करें वे अब राज्य में तो मान ही लें क्योंकि केन्द्र सामने रख दिया गया है। जो भी खेल दिलचस्प हो चला है।

पुण्य प्रसून ने कई बातें रख दीं

पुण्य प्रसून वाजपेयी गए ही क्यों थे वहां। हम लोगों से या किसी पटना वाले से ही पूछ लिया होता...फिर भी जो लिखा वो....बहुत खूब...। सदाकत आश्रम में 1962 में कांग्रेस का राष्टीय अधिवेशन पहली बार और अंतिम बार हुआ था। नीलम संजीव रेड्डी अध्यक्ष थे और नेहरू जी ने भाषण में चंपारण को माध्यम बनाकर गांधी जी को याद किया था। लेकिन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर चुप्पी साध रखी थी, जिन्होंने सदाकत आश्रम को आबाद किया था। इस अधिवेश के अलगे साल ही राजेन्द्र बाबू का निधन हो गया और सदाकत आश्रम में सूनापन छा गया। 2 अक्टूबर 1966 में कंक्रीट सदाकत का उद्घाटन हुआ और आश्रम दफ्तर में बदल गया। चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों को 75 लाख रुपये मिलने वाला है इसलिए उम्मीदवार भी कुछ मिल जा रहे हैं। 1921 से 2010 तक 37 अध्यक्षों के नाम लिखे हैं। 1989 से 2010 तक 21 वर्षों में 13 अध्यक्ष बने। 1921 में मजरूल हक और 90 साल बाद 2010 में महबूब अली कैसर। प्रदेश अध्यक्ष की हिम्मत नहीं कि सदाकत आश्रम में आकर बैठ जांय। किसी कांग्रेसी वरिष्ठ में हिम्मत नहीं कि जूते चप्पलों और गाली गलौज में ठहर सकें। टिकटों की मारामारी पर कांग्रेसी नेता खुशफहमी पाल रखे हैं। मनीष तिवारी ने बयान दिया था लोकप्रियता बढ़ी है। लेकिन सच क्या है वे भी समझते हैं। जनसत्ता में प्रकाशित इनका आलेख मुझे मार्मिक लगा है।

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

जुगाड़ टेक्नोलॉजी बिहार में

जुगाड़ टेक्नॉजी का एक उदाहरण- बिहार में फास्ट सुपर फास्ट महा फास्ट एकदम फास्ट.....किसी भी ट्रेन को रोकने के लिए दैया तौबा मचाने की जरूरत नहीं है....यहां बस एक सिक्के की आवश्कता है। केवल एक रुपये के सिक्के की। मोकामा-किउल-जसीडीह रेलखंड़ पर खूब इस्तेमाल कर रहे हैं इस जुगाड़ टेक्नोलॉजी का। ट्रैक एक इंच गैप पर सिक्का रख कर सर्किट पूरा कर दिया बस सिग्नल लाल हो गया। हालांकि इसका गलत उपयोग किया जा रहा है और रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर खलल ही कहा जाएगा। लेकिन एक बात तो है। उपयोग जो भी हो प्रतिभा को तो मानना ही पड़ेगा। यही काम कोई सूटबूट वाला चिकना कर देता, कर तो नहीं ही देता चुराकर दिखा देता, तो वाह वाह, धोती कुर्ता वाले गरीब लोगों ने कर दिया तो बाप बाप। मल्टिपल एक्सपर्ट सिग्नल रेलवे ट्रैक के माध्यम से यह काम करता है। ट्रेन आने के लिए मिलने वाला ग्रीन सिग्नल ट्रेन के जाने के बाद लाल हो जाता है। सिग्नल खंभे के पास ही रेलवे ट्रैक में लगे सिग्नल सर्किट के ऊपर ट्रेन का पहिया फ्यूज का काम करता है। यही पर लोग सिक्का भी लगा देते हैं। बात आसान है लेकिन खोज निकालना। फिर भी इस जुगाड़ टेक्नोलॉजी का यह उपयोग गलत है।
कुछ बातें याद दिलाता हूं। गया में एक व्यक्ति पीपल के पत्ते से मोबाइल चार्ज कर लिया करता था। मुजफ्फरपुर के पास एक छात्र में घऱ में ही कुछ टूटे फूटे और बचे खुचे सामानों से रेडियो के चैनल को खोज निकाला। लेकिन जब चाहो जहां चाहो जिस भी रेलगाड़ी को रोक दो ये बात कोई न्यूट्रल होकर सुन भी ले.....मैं तो हैरत में हूं कि गांव के लोगों ने एक ऐसा कुछ खोज निकाला है। भई अपने जुगाड़ टेक्नोलॉजी के चलते तो बड़े बड़े देश के महान कर्मठ जी लोग परेशान हैं।

सोमवार, 30 अगस्त 2010

एसपी की पिटाई, सर्च ऑपरेशन रोकने के लिए धमकी

लखीसराय में नक्सलियों ने कहर बरपाया। 7 जवान शहीद हो गए। 400 जवान सर्च ऑपरेशन में लगे हैं। लेकिन ये लोग घटना के 20 घंटे बाद लखीसराय के कजरा के पास की पहाड़ी तक पहुंचे। हेकिकॉप्टर से कुछ पदाधिकारी भी आए हैं। इसबीच पुलिस मेन्स एसोसिएशन के लोगों ने एसपी अशोक कुमार सिंह को पीट दिया। कारण जो भी रहा हो। प्रमुख बात ये थी कि कई जवानों का शव 24 घंटे तक नहीं उठाया जा सका था। थाना प्रभारी भी शहीद हो गए। रविवार को हमला हुआ और समय पर पुलिस को कहीं से कोई मदद नहीं मिल सकी। अब नक्सलियों ने सर्च ऑपरेशन रोकने के लिए भी धमकी दे दी कि उनके कब्जे में चार पुलिस वाले हैं। नक्सलियों का कहर अब झारखंड की जगह बिहार में बरप रहा है। कैमूर में शांति सेना के 22 लोगों को अगवा किया गया लेकिन वे सभी छुड़ा लिये गए। चार नक्सली भी पकड़े गए। हाजीपुर में एक गांव पर ही इन लोगों ने हमला कर दिया। गांव वालों ने गोली का सामना पत्थरों से किया। नक्सली भाग गए। पूर्वी चंपारण में 25 नक्सलियों ने एक मोबाइल टावर को उड़ा दिया, कर्चमारियों को पीट दिया। शिवहर में बीडीओ मनोज कुमार का अपहरण कर लिया और प्रशासन से बार्गेनिंग की। सोमवार को उन्हें रिहा कर दिया। सवाल है कि ये लोग चाहते हैं क्या हैं। चुनाव के समय इसतरह की गतिविधि कैसे बढ़ गई। कौन सह दे रहा है कि राज्य में अशांति करो तो सत्ता की बागडोर किसी के हाथ से खिसक कर किसी और के हाथ में आ जाए। अनानक बढ़ गई नक्सली गतिविधियों को सिरे से समझने की जरूरत है।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

भगवा आतंक और चिदंबरम-पवार-अर्जुन

भगवा आतंक saffron terror एक नया शब्द गढ़ा चिदंबरम ने। सोचा था शरद पवार की तरह चल जाएगा सिक्का या फिर थोड़ा बहुत हल्ला होकर रह जाएगा। बाद में मीडिया में नाम आएगा कि पवार ने एक नाम दिया फिर उससे आगे बढ़कर चिदंबरम ने एक नाम निकाला। बुधवार को राज्यों के डीजीपीगणों से बात कर रहे थे चिदंबरम कि नक्सली समस्या और आतंकवाद से लोगों परेशान हैं लेकिन ऐसा लगा कि सारे आतंक भूल कर एक ही आतंक याद रह गय़ा वो था इनके सत्ता खोने का आतंक। पवार और अर्जुन सिंह का मिला जुला संस्करण बनने की कोशिश में दूबे बन कर बैठ गये हैं। कांग्रेस ने बोलबाया और रणनीति के तहत पीछ हट गई। क्योंकि बयान के तीसरे दिन जनार्दन द्विवेदी कहते हैं कि चिदंबरम को सोच समझ कर बयान देना चाहिए। कांग्रेस ने इस शब्द को गिरा कर नब्ज टटोलने की कोशिश की है कि आखिर किस हद तक हो सकता है और विरोध और कहां कहां हो सकता है विरोध। दूसरे राममंदिर पर कोर्ट का फैसला आने का समय आ रहा है। तीसरे, महंगाई पर रोज रोज नियंत्रण के पीएम के भाषण के वावजूद महंगाई बढ़ ही रही है, वहां से भी लोगों को डायवर्ट करना था। पांचवां, कश्मीर लगातार जल रहा है जिससे लोगो में गुस्सा स्वाभाविक है। छठा, बीजेपी के साथ परमाणु मसौदे पर सांठ गांठ का हल्ला। इसके अलावे कुछ और कारण भी हैं। इस शब्द के बाद विपक्ष के कई नेता जो कांग्रेस के खिलाफ बक रहे थे उन्हें सटने सा मौका मिला। बीजेपी से दूरी बढ़ाने में कामयाबी मिली। सदन में अचानक नए मुद्दे उठे। यानि कुछ दिनों तक जन असंतोष को संठ करने में इस बयान का तो लाभ मिल ही गया।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

प्रधानमंत्री बनाम प्रधान मंत्री

मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में सदन में सांसद, नाटकीय विरोधों का सिलसिला, सांसदों की बेपरमान वेतन वृद्धि, यही कुछ 1 लाख 6 हजार वेतन भत्ते मिलाकर प्रतिमाह, किसका पैसा है और किसे मिलेगा। उनका पैसा है जो दिन रात काम में जुटे हुए हैं और जुते हुए हैं। मिलेगा उनको जिनका जीवन सभी के सामने अब खुलता ही जा रहा है। साल भर में तो इन लोगों को अरबों मिल जाएगा। देश की जनता को क्या मिलेगा। योजनाओं का आश्वासन। कांग्रेस जिनके बदौलत खड़ी है यानि सोनिया और राहुल जी, तो राहुल जी कालाहांडी में कह गये हिन्दुस्तान के भीतर दो हिन्दुस्तान है। अमीर अमीर होते जा रहे हैं और गरीब दिनों दिन गरीब होते जा रहे हैं। उन्हें सांसदों के वेतन भत्ते से कुछ भी लेना देना है या नहीं। मनमोहन जी आर्थिक नीति पर 1996 में ही कई लोग बोल रहे थे कि इस आर्थिक नीति से यही होने वाला है। उस समय ऐसे लोगों की आलोचना कर कांग्रेस वाले अब राहुल यही बात बोल रहे हैं तो क्या कहेंगे कांग्रेस वाले। ऐसा नहीं है कि मनमोहन के खिलाफ कोई टिप्पणी की गई है बल्कि खुद को कुछ अलग साबित करने के लिए एक बात उठाई गई है। मनहमोहन जी सातवीं बार लाल किला में चढ़े हैं। अमीरिकी साप्ताहिक ने जबरदस्त बड़ाई कर दुनियां का श्रेष्ठ प्रधानमंत्री तक कह दिया है, लेकिन विकास को लेकर भारत को 78 वें पादान पर धकेल रखा है। यानि पीएम अगर बधाई के पात्र है तो उनके कार्य इतने दिनों में बधाई को एक जुमला पाने लायक क्यों नहीं हुआ। आर्थिक ताकत के रूप में चीन उभर गया और जापान को दूसरे नंबर पर धकेल दिया। भारत में प्रतिभा का पलायन है तो यही प्रतिभा दूसरे देशों में खूब फल-फूल रही है, क्यों? सवाल कई हैं। जबाव भी कमोवेश जनता जानती ही है। जबाव देना जानती है या भूल गई, इसपर थोड़ा अध्ययन जरूरी हो चला है।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

32 साल का स्कूली छात्र

32 साल का डील सिंह अपने बच्चों के साथ स्कूल जाने लगा। वह आठवीं क्लास में पढ़ता है। मध्यप्रदेश के डिडौरी जिले का रहने वाला है डील सिंह। पत्नी भी पढ़ाई में सहयोग करती है। पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। जिले के कलक्टर ऐसे छात्रों को सम्मान देना चाहते हैं ताकि लोगों को प्रेरणा मिले।
ऐसे कई उदाहरण है लेकिन आठवीं से अपनी पढ़ाई करने के उदहरण बिरले ही मिल सकते हैं। आम तौर पर अपनी बड़ी पढ़ाई में बड़ी डिग्री जोड़ने के लिए तो लोगों को बार बार पढ़ते जरूर देखा है लेकिन एक बार बचपन में पढ़ाई छोड़ने के बाद फिर से वहीं से शुरू करना आसान काम नहीं था। निश्चय ही डील सिंह बधाई के पात्र हैं और समाज के लिए प्रेरणा भी हैं।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

रक्षाबंधन का त्यौहार

रक्षाबंधन का त्यौहार। गाना बहुत जोरों से चला। बहना ने भाई की कलाई पो हो sssssss ssssss . मेरे भैया मेरे चन्दा..........। बाजार में रंग विरंगी राखियों का जमाना लद गया।
जब हम बच्चे थे
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल ते नित्वानि प्रति बद्धानानि रक्षा मा चल मा चल।
कुछ तो महा महा यानि वहां वहां चलॉ भी बोल समझ लेते थे।
घर में एक पुरोहित जी राखी बाधने आते थे। समाज को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। वे इसबात को जानते थे या नहीं जानते थे लेकिन राखी बांधते थे। कभी कभी भोजन भी करते थे.. या फिर दान दक्षिणा ले जाते थे।
जब थोड़े बड़े हुए। कहानी पढ़ी कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी तब से रक्षाबंधन मनाया जाता है।
थोड़े और बड़े हुए
राखी हुमायूं ने बांधी थी या नहीं यह तो पता नहीं चला लेकिन चित्तौड़ में जौहर जरूर हुआ था।
और अब,
ये त्यौहार भाई बहन का हो गया। कुछ पुराने लोग भी मनाते दिखते हैं लेकिन झिझक के साथ।
नई पीढ़ी में भाई बहन का रक्षाबंधन खूब चल रहा है।
पितामह मौन हैं। दायरा त्यौहार का सिमट कर कोई और रूप ले चुका है। मीडिया को पुर्सत नहीं। पुरोधा को हिम्मत नहीं।
रक्षा किसकी करनी और कौन करेगा पता नहीं।
क्यों न,
भाई बहन के त्यौहार को अपनी जगह तर्जी देते हुए उस सामाजिक मूल्य को भी जागृत करें।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

फिर महंगाई पर नियंत्रण करेंगे मनमोहन

एक फिर मनमोहन सिंह महंगाई पर नियंत्रण करेंगे। हालांकि ये बयान आज का नहीं है। यह बयान उस समय का भी है जब यूपीए सरकार के 100 दिन पूरे हुए थे। क्योंकि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने चुनावी घोषणा की थी कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं तो 100 दिनों के भीतर महंगाई पर काबू पा लेंगे। लेकिन सत्ता में आने से 100वें दिन उन्होंने कहा कि महंगाई पर नकेल मुमकिन नहीं लेकिन वे जल्द ही कुछ उपाय करेंगे। प्रधानमंत्री उपाय करते रहे, महंगाई बढ़ती रही। योजनाओं की घोषणा करते रहे और य़ोजनाओं के पैसों को नौकरशाह की जेब में डालते रहे, महंगाई बढ़ती रही। लोकसभा में विपक्ष ने सवाल उठा दिया, अवरोध खड़ा कर दिया तो फिर बयान आया कि महंगाई को रोकने की कोशिश करेंगे। 64वें स्वतंत्रता दिवस मौके पर जब सारे देशवासी लाल किला से किसी मजबूत कदम की प्रतीक्षा कर रहे थे तो फिर वहीं बयान आया कि महंगाई कम करने की कोशिश करेंगे। वे घोषणाएं करते जा रहे हैं और महंगाई बढ़ती जा रही है।

रविवार, 8 अगस्त 2010

प्रेमी युगल की जिन्दगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था

इसबार कोई सेक्यूलर नेता बोल नहीं रहा। इसबार इंडिया गेट पर कोई मोमबत्ती जुलूस नहीं निकला। प्रेमी जोड़े भागते फिर रहे हैं। आगरा के जुनैरा कमाल ने अरूण सिंह से शादी रचा ली है। आगरा कैंट के बीएसपी विधायक जुल्फीकार भुट्टो पर धमकाने का आरोप लगा है। विधायक के आदमी उन्हें खोजते हुए मुंबई तक पहुंच गए थे लेकिन मुंबई पुलिस ने दोनों के सर्टिफिकेट देख कर विधायक के लोगों को ही फटकार लगा दी। इधर, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन दोनों के पक्ष में फैसला दिया है और आगरा के एसपी को इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी है। भारतीय संविधान के तहत ये लोग पति पत्नी हैं और इन्होंने कोई गलती नहीं की है फिर भी इनके पीछे लोग क्यों पड़े हैं। केवल इसलिए कि लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू। सवाल उठता है इनकी ओर से आवाज क्यों नहीं उठ रही। जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी क्या है और मुख्यमंत्री मायावती अपने विधायक पर नकेल नहीं कस पा रही हैं। जुनैरा और अरुण भागते फिर रहे हैं। आगरे का ताजमहल को तो लोग प्यार के नाम से ही जानते हैं लेकिन इसी आगरे के प्रेम दूसरे शहरों में दर दर की ठोकरें खा रहा है। कभी जयपुर तो कभी मुंबई तो कभी लखनऊ और उनके पीछे लगे हैं कुछ गुर्गे। तसलीमा का केस हो या कोलकाता के तोदी परिवार का, आवाज तो खूब उठी थी और सरकारें भी आगे बढ़ कर काम करती दिखीं। निरुपमा के केस में भी खूब मोमबत्ती मार्च हुआ लेकिन जुनैरा और अरूण के मामले में चुप्पी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है। इस मामले में आगरा पुलिस की भूमिका भी गजब की है। क्या पुलिस को भी भारतीय संविधान का पता नहीं? ऐसी पुलिस पर कैसे आम जनता भरोसा करे?

रविवार, 1 अगस्त 2010

रेलवे में भ्रष्टाचार का बोलबाला

रेलवे का मतलब भ्रष्टाचार हो गया है। स्टेशन मास्टर, टीटीई, जीआरपी, बाप रे बाप! रेलवे आम लोगों के लिए समस्या बन गई है। कई बार ऐसा लगता है कि रेल की यात्रा कहीं अंतिम यात्रा न हो जाए। अगर अंतिम यात्रा न भी हो तो वहां टीटीई नाम के यमराज आपको जरूर मिल जाएंगे। उससे भी बच निकले तो जीआरपी नाम के यमदूत से बचना मिश्किल है। इन सबकी कारगुजारियों से सभी को पाला पड़ जाता है। रिजर्वेशन नहीं है तो टीटीई छोड़ेंगे नहीं। गजब का भ्रष्टाचार है रेलवे में। प्लेटफॉर्म पर छोटी दूरी के लिए टिकट पर आरक्षण लेना हो तो आरक्षण चार्ज के अलावा टीटीई को अलग से सलामी चाहिए। वेडर्स भी परेशान हैं। उनसे पूछिए कि तुम्हारे सामान का दाम आमतौर पर दुकानों पर के दाम से डेड़ गुना क्यों है को वो यही कहेगा कि स्टेशन पर पैसे देने पड़ते हैं। आपके पास कुछ ज्यादा सामान दिख जाएं तो सुरक्षा के नाम पर जीआरपी मनमानी पर उतर जाएंगे और ठीकठाक रकम उगाह कर ही छोड़ेंगे। हां सचमुच किसी को कोई परेशानी हो जाए। बीमार पड़ जाए तो इससे इन लोगों को कोई मतलब नहीं रहता। ये सभी लोग भी उपर की दुहाई दे देते हैं कि हमें भी कहीं जमा करना पड़ता है। नए बहाल टीटीई के जलवे कुछ ज्यादा ही दिखाई देते हैं जैसे ये मान कर चल रहे हैं कि जब है जी..जी भर के पी। स्लीपर के यात्री भगवान भरोसे हैं। न तो शौचालय की हालत ठीक रहती है, न बेसिन में पानी आता है, न ही कहीं सफाई का नाम मिलता है और ना ही बर्थ सुरक्षित रहता है। जेनरल की बात तो दूर की है। एसी वाले को थोड़ी राहत है। रेलवे के कर्मचारियों में एक खास बदलाव देखने को मिल रहा है। ये लोग अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद इतने रहते हैं कि आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सवाल उठता है कि आखिर कैसे हो रही है बहाली और कौन लोग किस कटगरी के है जो ऐसे है कि उन्हें काम से लेना देना कम रह गया है।

शनिवार, 24 जुलाई 2010

अब क्या सोचना भी लाजमी नहीं?

जनता को क्या चाहिए? मेरे मन में एक अजीब सा सवाल उठ रहा है। अगर कहें कि जनता को तो बस सुख चैन चाहिए तो यह बात पूरी तरह से सही नहीं लगती। वरना उन्हें चैन की बातों क्यों नहीं अच्छी लगती। बेचैन करने वाले लोग सदन तक कैसे पहुंच रहे हैं। मुद्दों के जोर पर कैसे जनता दिशा बदल लेती है या फिर सीधे शब्दों में कहें तो दिशाहीन हो जा रही है। लालू-पासवान के बंद में बिहार में खूब गुंडागर्दी हुई। फिर विधानसभा में लोकतंत्र को शर्मसार करने की घटना हुई। कांग्रेस वाले सोलंकी के साथ भी उस दिन चुप रहे जब बंद के नाम पर सरेआम गुंडागर्दी हो रही थी, अब राज्य सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। महंगाई के बारे में ये लोग कुछ नहीं बोलते। अमेरिका की आर्थिक नीतियां देश में हावी होती जा रही हैं। खाद और डीजल पर इनकी मजबूरी है। सज्जन और टाइटलर को सीबीआई क्लीन चिट देकर नए सिरे से अमित शाह के पीछे लगी है, इसमें भी कुछ वैसा ही होगा। बोफोर्स और गैसकांड तिलहंडे में चला गया। सीमा पर हलचल है कश्मीर का जलना जारी है। आतंकी सिर उठा रहे हैं। नेता जी मुद्दे को डायवर्ट करने की राजनीति कर रहे हैं। इन्हें शिक्षा से कितना लेना देना है सभी जानते हैं लेकिन शिक्षा नीति यही लोग निर्धारित करते हैं। इन सबका व्यक्तिगत जीवन कैसा इस बात को लोग जानते हैं लेकिन चुनाव आते आते इनकी ही बातें जनता के सिर पर चढ़ कर कैसे बोलने लगती है। जनता इनकी बातों में बार बार क्यों आ जाती है।

रविवार, 11 जुलाई 2010

प्रधनमंत्री पद के लिए गीता की शपथ

प्रधानमंत्री के पद और गोपनीयता की शपत लेने के लिए हाथ में गीता भी रखी जा सकती है, ऐसा सोचना थोड़ा कठिन हो चला है लेकिन त्रिनिनाद टोबैगो के की पहली नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने अपने पद की शपथ हाथ में गीता लेकर ली। 26 जून को नोस्ली (पोर्ट ऑफ स्पेन) में एक समारोह में देश के राष्ट्रपति श्री जार्ज मैक्सवेल रिचर्ड ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। दुनियां के लिए यह एक अनोखी घटना है। अबतक गीता अथवा किसी भी भारतीय दर्शन से जुड़ी पुस्तकों को दूसरे अथवा दूसरे देशों के रिलीजियश बुक्स के रूप में देखा जाता रहा, जिसमें उस किताब को भी सबसे अच्छा और श्रेष्ठ बताया गया और उसमें वर्णित परमशक्ति ही उसी नाम से सबसे श्रेष्ट होते हैं लेकिन भारतीय धर्मग्रंथ या दर्शन में ईश्वर के सभी रूपों को परमशक्ति, परमसत्ता, भगवान यहां तक कि कण कण में विराजने वाला बताया है। जरूरत है निर्विकार रूप से इन्हें देखने की।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

अब कौन करेगा सन थेरेपी

बिहार के बांका जिले के धोरैया-भगवानपुर में सन थेरेपी देखने को मिला था। सैकड़ों नहीं हजारों लोगों का मुफ्त इलाज, वो भी लीवर का, होते हुए इस इलाके के प्राय: सभी लोगों ने देखा। उगते सूरज के साथ कच्चा धागा और तांत लेकर सूजे हुए लीवर और वहां त्वचा के भीतर से साफ साफ दिखाई देने वाले नीले रंग के हो चुके नस और शिराओँ को महज 21 दिनों में ठीक कर, इतना ही नहीं कई बार तो खाट पर पड़े रोगियों को 21 दिनों के भीतर उठा कर दौड़ा देने की कूवत रखने वाले जगदीश मिश्र की कीर्ति को लोगों ने काफी नजदीक से या ऐसे कहें कि सबकुछ सामने साफ साफ देखा। आमतौर पर हरेक रविवार की सुबह देखा। अब वो जगदीश मिश्र संसार में नहीं रहे। 106 वर्ष की आयु में चलते फिरते जगदीश मिश्र ने 06जुलाई10 मंगलवार की सुबह अपना शरीर त्याग दिया। इलाके में उन्हें कोई ज्योतिषी और कोई तांत्रिक के रूप में जानते थे। हालांकि उनकी पढ़ाई कम हुई थी लेकिन शास्त्रों के जानकार के रूप में उनकी पहचान थी। आज भले ही कई रोगों के लिए सन थेरेपी प्रचलित हो रहा हो लेकिन जिसने उन्हें जब से देखा उसने उनके पास इस विद्या को जरूर देखा। यह एक परंपरागत शिक्षण रहा होगा। अब यह प्रक्रिया कहीं भी देखने या सुनने को नहीं मिलती। इससे भी खास बात एक और कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए वे एक संन्यासी थे। जिनलोगों ने उनका जीवन पास से देखा है वो जानते हैं कि कभी एक पैसा उन्होंने जमा नहीं किया। न तो उनका कोई बक्सा है और न ही कोई थैला जिसमें देहावसान के बाद कोई विरासत ढूंढ सके। मुटठी बांध कर आये थे खुले हाथ चल दिए। ये संदेश दूसरों को भी देते थे लेकिन उपदेश से ज्यादा अपने आचरण से। मन से हठी, हृदय से धनी, समाज के लिए योद्धा के रूप में, खेतों में पूरे किसान, स्वभाव से ज्ञानी और आध्यात्मिक-ऐसे थे जगदीश मिश्र।

सोमवार, 5 जुलाई 2010

भारत बंद रहा, जेडीयू क्यों खुल गए

महंगाई के मुद्दे पर भारत बंद रहा। लंबे समय के बाद एक बड़ा आन्दोलन देखने को मिला। बस सेवा, रेल रेवा यहां तक कि वायु सेवा भी जोरदार प्रभावित हुई, जिससे लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। हालांकि ज्यादातर लोगों ने अपनी यात्रा पहले से नहीं करने की तैयारी कर ली थी। लोग खुद ही नहीं निकले। इस दौरान बिहार में फिर से नरेन्द्र मोदी के नाम पर राजनीति का मामला उठा। जेडीयू सांसद मोनाजिर हसन से नरेन्द्र मोदी पर टिप्पणी कर दी। इसके कई पहलुओं पर गौर करने की जरुरत है। मोनाजिर ने इसलिए मामला नहीं उठाया कि उन्हें नरेन्द्र मोदी से कुछ लेना देना है, बल्कि इसलिए उठाया कि तसलीमुद्दीन जेडीयू में शामिल हो गए हैं। ऐसे में बिहार में और सत्तारूढ़ दल में मुसलमानों का नेता कौन कहलाए? नीतीश पर मोनाजिर जिन कारणों से दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं उसमें सेंध लगने की पूरे हालत खड़े हो गए हैं। तसलीमुद्दीन के जेडीयू में आने भर से लालू को झटका तो लगा ही है कांग्रेस के लिए भी झटका ही है। इतना ही नहीं नीतीश के साथ मोनाजिर की दूरी कभी चर्चा में थी, उसे बढ़ाने या पाटने की अब जरूरत नहीं लग रही है, इसलिए मोनाजिर की यह राजनीतिक मजबूरी थी कि नरेन्द्र मोदी को ही हथियार बनाया जाए। फिर भी, नरेन्द्र मोदी पर मोनाजिर के बयान को कई रूप में और संकेत में देखने की जरूरत है। क्योंकि, कांग्रेस लगातार बिहार में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।

बुधवार, 16 जून 2010

एंडरसन, कांग्रेस और राष्ट्रधर्म

कांग्रेस ने एंडरसन को भगाने के मामले में एक नया और शर्मनाक तर्क गढ़ लिया है। पार्टी की तरफ से लीगल सेल ने बयान जारी किया है कि एंडरसन को भगाना राष्ट्रधर्म था क्योंकि भोपाल के हालात बड़े खराब थे। उसे कोई मार देता तो क्या होता। यह दूसरा नया तर्क है। पहला अर्जुन सिंह के माथे सारा कुछ मढ़ने की कवायद और अब एंडरसन को भगाने को जायज ठहराना। इसके लिए कसाब का उदाहरण भी दे डाला है कि वह दोषी है लेकिन उसकी रक्षा में सरकार लाखों रूपये खर्च कर रही है। अर्जुन सिंह की चुप्पी और उनके उपर ही कांग्रेसियों का आरोप, उसके बाद एंडरसन को भगाने को तर्कसंगत बनाने की कोशिश करना, ये दोनों ही बातें एक ही कड़ी में है। कांग्रेस के सामने पहला लक्ष्य है राजीव गांधी को बचाना। विपक्ष बार बार राजीव गांधी को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है। इसलिए कांग्रेस के नेता यह एक नया बयान दे रहे हैं। पार्टी के नेता भी जानते हैं कि इससे बहुत असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन कार्यकर्ताओं को बोलने का एक तर्क मिल जाएगा। अब अगर पीसी एलेक्जेंडर अपना मुंह खोलते हैं या कोई संकेत देते हैं तो फिर राजनीतिक बबंडर उठेगा और इसके लिए एक रास्ता कांग्रेसियों ने बना कर रख दिया है ताकि राष्ट्रधर्म के नाम पर कुछ बोला जा सके।

रविवार, 13 जून 2010

भोपाल गैसकांड: एंडरसन गया कैसे?:

एंडरसन को सुरक्षित भगाने की घटना अवाक करने वाली नहीं है। तह में जाने पर कई मामले मिल जाएंगे जो दूसरे देश के हैं और दोषी होने के बावजूद बचाने की कोशिश की गई है। 7 दिसंबर 1984 को एंडरसन भोपाल से सुरक्षित निकल गया। डीएम मोती सिंह, पायलट और एवीएशन के तत्कालीन डायरेक्टर के बयान ने भले ही तूफान खड़ा कर दिया हो, लेकिन अर्जुन सिंह चुप हैं। वे ही मुख्यमंत्री थे। शायद अर्जुन की नई पारी है चुप्पी। गांधी परिवार पर एसहान जताने का उन्हें एक बड़ा मौका हाथ लगा है। कांग्रेसी नेताओं के सामने एक ही बात है कि वे क्या करें क्या न करें। दिग्विजय सिंह ने राज्य सरकार को बचाने की कोशिश की तो बसंत साठे ने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सत्यव्रत चतुर्वेदी ने केन्द्र को बचाने की कोशिश की और राज्य सरकार यानि अर्जुन सिंह को बलि देने की तैयारी कर ली है। बूटा भी ऐसा ही कुछ बोल रहे हैं। जनार्दन द्विवेदी कहते हैं दिग्विजय और सत्यव्रत के बयान निजी हैं। पायलट और एविएशन डायरेक्तर यूनियन कार्बाइड से अर्जुन सिंह ने मोटा डोनेशन लिया था। अर्जुन अबतक इतना ही कह पाए हैं कि एंडरसन के बारे में उनको लेकर जो खबरे चल रही हैं वे सच नहीं हैं। अर्जुन जी! फिर सच क्या है? अब सवाल उठता है कि भोपाल से दिल्ली तक भले ही अर्जुन सिंह अपने मुख्यमंत्री पद का इस्तेमाल कर भेज दें लेकिन उसके बाद दिल्ली से अमेरिका के लिए आराम से कैसे रवाना हुआ एंडरसन। सवाल ये भी है कि कल तक केन्द्र में अर्जुन सिंह की तूती बोल रही थी लेकिन, इसबार चुनाव होते होते अर्जुन जी क्यों किनारे कर दिए गये। क्या 25 वीं बरसी पर उनको ही बलि बनाने का पूरा खाका तैयार था?

शनिवार, 27 मार्च 2010

होली और 'हाट'

होली के पावन त्योहार में
रंगों के मनभावन फुहार में
भींगे तन-मन अपना जीवन
गुलाल की खुशबू बयार में।
विक्रम संवत 2067 शुभ हो
चैत की गर्माहट अब हो
जीवन की रंगीनियां हो जब
क्यों न डूबें हम प्यार में।
पलाश के रक्तिम यौवन में
महुआ के मदमाते जीवन में
वन-प्रांतर में होता पतझड़
कोलाहल है गांव-जबार में।
याद करें आश्रम-जीवन हम
रंग-गुलाल में डूबा बचपन
चलों करें उसको तरो-ताजा
स्वागत है नेतरहाट परिवार में।
--राजेश रमण (सत्र 1981-88) rajeshraman451@gmail.com
{संप्रति नेतरहाट विद्यालय (पुस्तकालय) में कार्यरत}

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

राहुल गांधी के दौरे से किसको क्या मिला

शिवसेना से वाकयुद्ध के बीच 1 और 2 फरवरी 2010 को राहुल गांधी के बिहार दौरे के बाद देश की राजनीति में तूफान आ गया और तीन दिनों तक यह तूफान जारी रहा। राहुल गांधी के बिहार दौरे के पहले ही जेडीयू में टूट के समीकरण बन गए। प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह, सांसद प्रभुनाथ सिंह और पार्टी के प्रवक्ता शिवानन्द तिवारी की नाराजगी को हवा मिली। ललन सिंह ने नीतीश पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिय़ा लेकिन बाकी दोनों अभी चुप हैं। पार्टी में उपेन्द्र कुशवाहा की बढ़ती अहमियत ने कई नेताओं की नाराजगी बढ़ा दी है। जब ललन सिंह इस्तीफे की पेशकश कर रहे थे उस समय नीतीश ने कुछ अलग ही राग अलापा। उस समय वे पटना के मोना टॉकिज में थ्री इडियट्स फिल्म देखने गये थे। उसके बाद शुरू हुआ राहुल गांधी का बिहार दौरा। इसकी शुरूआत की चंपारण के भितहरवा गांधी आश्रम से, जहां से महात्मा गांधी ने नीलहे किसानों का आन्दोलन शुरू किया था। राहुल का विरोध यहां भी देखने को मिला लेकिन बात केवल गांधी जी के आश्रम तक जाने के लिए पास नहीं मिलने जैसी बातों तक आकर रुक गयी। इसके बाद वे दरभंगा पहुंचे। दरभंगा में विरोध हुआ। बात दबी दबी सी थी कि आखिर छात्रों ने क्या पूछा। बताया जाता है कि दरभंगा में पटना के छात्र राहुल राज जिसकी हत्या फर्जी एनकाउंटर में की गई थी, सवाल ऐसा ही कुछ पूछा गया था और राहुल ने चुप्पी साध कर बात टालने की कोशिश की। यहीं से हंगामा शुरू हुआ और इसमें 12 से ज्यादा छात्र घायल हो गए। उसके बाद गया में भी माहौल कुछ खास नहीं रहा। जब वे पटना की चल रहे थे तो उस समय पटना में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट काले झंडे के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। दूसरे दिन भागलपुर में भी ऐसा ही हुआ। भागलपुर में भी मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ने काले झंडे से ही राहुल का स्वागत किया। साथ ही वहां छात्रों के साथ ही हंगामा का ही माहौल रहा। पत्थरबाजी भी हुई। पटना में प्रेस कांफ्रेस के दौरान नीतीश के खिलाफ राहुल ने खूब कसीदे पढ़े। नीतीश का इंटेशन सही बताया लेकिन इम्प्लीमेंडटेशन को गलत बताया। राहुल गांधी के बिहार दौरे के समय एक बयान खूब जोर से उछला वो था मुंबई सबके लिए है। 26/11 मुंबई हमले के मुद्दे पर बयान देकर उन्होंने शिवसेना को मुद्दा दे दिया और 5 फरवरी को मुंबई दौरे के समय शिवसेना ने विरोध प्रदर्शन किया जगह जगह काले झंडे दिखाए। राहुल अपने पूर्व निर्धारित गन्तव्य स्थान तक तो पहुंचे लेकिन आम लोगों की जगह उन्होंने सरकार और पुलिस के जवानों के बीच ही रहना पड़ा। उनके रूट पर 144 धारा लागू थी। दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकार ने सारी ताकत लगाकर राहुल के लिए माहौल के पक्ष माहौल बनाने की पूरी कोशिश। इस बीच शाहरूख खान का भी मुद्दा खूब उछला। पाकिस्तानी खिलाड़ियों के स्वागत की बात करते ही शाहरुख पर शिवसेना की आवाज उठ गई। लंदन से तो शाहरुख जरूर दहाड़ते रहे लेकिन मुंबई आते ही उनके तेवर ढीले पड़ गए। उन्होंने कहा कि वे ठाकरे के साथ हैं गलतफहमी की वजह से ही विवाद पैदा हुआ और वे जो कुछ हैं, मुंबई की वजह से हैं। इस पूरे खेल में शिवसेना ने मनसे को मात दे दी। मराठी प्रेम खूब जताया।

रविवार, 10 जनवरी 2010

झारखंड एक खास आईना

झारखंड एक खास आईना बन गया

लोकतंत्र का एक गजब का स्वरूप देखने को मिल रहा है झारखंड में कुल 81 विधायकों में से 59 विधायक दागी हैं जिनपर आपराधिक मामले चल रहे हैं। सत्तादल में 31 विधायकों पर अपराधिक मामले चल रहे हैं तो मुख्य विपक्षी कांग्रेस-जेवीएम के 25 विधायकों में से 19 पर मामले चल रहे हैं। अब जरा ये भी देखें कि कौन सा दल कितने पानी में है- झारखंड मुक्ति मोर्चा के 18 में 17 विधायकों पर अपराधिक मामले हैं एक केवल दुर्गा सोरेन की विधवा सीता सोरेन पर कोई केस नहीं है। बीजेपी के 18 में से 8 विधायकों पर आपराधिक मामले हैं। कांग्रेस के 14 विधायकों में 11 पर आपराधिक मामले हैं और जेवीएम के 11 में से 8 विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। आरजेडी के पांच में चार विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। आजसू से पांच में से चार विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। जेडीयू के दो में से एक विधायक और जेजेएम के एक मात्र विधायक पर मामले चल रहे हैं। इलेक्शन वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। दूसरी तरफ, शिबू के शपथ ग्रहण के साथ साथ ही शशिनाथ झा हत्याकांड की सरगरमी भी सिर चढ़ी रही। दिल्ली में जन्तर मंतर पर शशिनाथ झा के परिजनों ने धरना दे दिया। कुड़को हत्याकांड में शिबू की पेशी की बात भी आ गई, हालांकि वे बाद में पेश होंगे।
नीरज की कविता याद आती है-
बेदाग सूत वाले सौदाग सूत वाले
इस हाट कुछ दुशाले, उस हाट कुछ दुशाले
कुछ कह रहे इसे ले कुछ कह रहे उसे
इसका कफ़न बना ले उससे बदन छुपा ले
मैं क्यों उसे कढ़ाऊं मैं क्यों उसे रंगाऊं
पर्दा उठा चुका हूं चादर बदल बदल कर
अपनी प्रकृति, व्यक्तिगत रंजिश, राजनीतिक वैमनष्य ने लोकतंत्र की धारा में कई अवरोध खड़े कर दिए हैं। ‘जनता का, जनता के द्वारा. और जनता के लिए’ की परिभाषा अब लोकतंत्र के लिए कितनी सार्थक रह गई है यह किसी से छिपी हुई नहीं रह गई है। एक परिभाषा ‘People get the government which they deserve’ अब तो ऐसा भी नहीं रह गया है। बात सीधी सी है कि हम चुनें कैसे? नहीं चुनें तो कैसे? छोड़ा नहीं जा सकता है और जब तीतर पकड़ने की कोशिश करते हैं बटेर कैसे मिल जाता है। सचमुच हाल के दिनों में हुए चुनाव में मतदाता अपने मतों का हिसाब खोजने की कोशिश में जुटता नजर आने लगा है।