शनिवार, 28 अगस्त 2010

भगवा आतंक और चिदंबरम-पवार-अर्जुन

भगवा आतंक saffron terror एक नया शब्द गढ़ा चिदंबरम ने। सोचा था शरद पवार की तरह चल जाएगा सिक्का या फिर थोड़ा बहुत हल्ला होकर रह जाएगा। बाद में मीडिया में नाम आएगा कि पवार ने एक नाम दिया फिर उससे आगे बढ़कर चिदंबरम ने एक नाम निकाला। बुधवार को राज्यों के डीजीपीगणों से बात कर रहे थे चिदंबरम कि नक्सली समस्या और आतंकवाद से लोगों परेशान हैं लेकिन ऐसा लगा कि सारे आतंक भूल कर एक ही आतंक याद रह गय़ा वो था इनके सत्ता खोने का आतंक। पवार और अर्जुन सिंह का मिला जुला संस्करण बनने की कोशिश में दूबे बन कर बैठ गये हैं। कांग्रेस ने बोलबाया और रणनीति के तहत पीछ हट गई। क्योंकि बयान के तीसरे दिन जनार्दन द्विवेदी कहते हैं कि चिदंबरम को सोच समझ कर बयान देना चाहिए। कांग्रेस ने इस शब्द को गिरा कर नब्ज टटोलने की कोशिश की है कि आखिर किस हद तक हो सकता है और विरोध और कहां कहां हो सकता है विरोध। दूसरे राममंदिर पर कोर्ट का फैसला आने का समय आ रहा है। तीसरे, महंगाई पर रोज रोज नियंत्रण के पीएम के भाषण के वावजूद महंगाई बढ़ ही रही है, वहां से भी लोगों को डायवर्ट करना था। पांचवां, कश्मीर लगातार जल रहा है जिससे लोगो में गुस्सा स्वाभाविक है। छठा, बीजेपी के साथ परमाणु मसौदे पर सांठ गांठ का हल्ला। इसके अलावे कुछ और कारण भी हैं। इस शब्द के बाद विपक्ष के कई नेता जो कांग्रेस के खिलाफ बक रहे थे उन्हें सटने सा मौका मिला। बीजेपी से दूरी बढ़ाने में कामयाबी मिली। सदन में अचानक नए मुद्दे उठे। यानि कुछ दिनों तक जन असंतोष को संठ करने में इस बयान का तो लाभ मिल ही गया।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

ये नेता अपने हरकतों से बाज नहीं आने वाले हैं। देश गर्त में जा रहा है और ये नेता बयानबाजी कर रहे हैं। चिदंबरम के बयान से तो लगता है कि भारत का नाम हिन्‍दुस्‍तान से हिन्‍दु हटा देने की मंशा है इनकी । यदि नहीं तो फिर इस तरह की बयानबाजी क्‍यों।