गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मौसेरा-वाद उग आया परिवारवाद और भाई-भतीजावाद की गोद में



राजनीति के संबंध बड़े ही चर्चित होते रहे हैं। 1928-29 से ही मोतीलाल के साथ साथ जवाहरलाल का नाम लोगों की जुबान पर चढ़ाने की कोशिश शुरू हो गई थी। 1953 में इलस्ट्रेटेड वीकली के मुख्य पृष्ठ पर भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में दो लोगों के चित्र छपे थे।  डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जय प्रकाश नारायण। हुआ कुछ और। बताया जाता है कि मृत्यु शय्या पर जवाहरलाल ने उनके उत्ततारधिकारी के रूप में इन्दु का नाम लिया था। फिर यह क्रम आगे चलता गया। कई लोगों ने इसे परिवारवाद का नाम दिया। अब दूसरे नेताओं में परिवार वाद की होड़ लगी। वंशवाद की वंशी बज उठी, उन सबकी एक ही धुन थी पीओ और पीेने दो। बड़े परिवाद के सामने छोटे परिवारवाद को बड़ी जगह में जगह नहीं मिल पायी तो राज्यों में दूसरे स्तर के नेताओं का परिवारवादी सिक्का जम गया। इसके बाद परिवारवाद के साथ साथ भाईभतीजा वाद का दौर शुरु हो गया। दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, दक्षिण के राज्य, महाराष्ट्र। कोई नर्मदा को नर मादा समझे तो भी लीडर, किसी नो अनपड़ पत्नी को सीएम बना दिया वो भी लीडर। फिर बने हुए बाप के बिगड़े बेटों का दौर भी शुरू हो गया। उपर के कई नेता इस होड़ में शामिल हुए और नीचे के भी कई नेताओं के घर यही हाल। सभी आनन्द में थे। परिवारवाद और भाई-भतीजावाद में मिल जुलकर बहुत कुछ कर डाला। अलग अलग नेताओं ने अवसरवाद भी दिखाया और एक दूसरे के खिलाफ जहर भी उगला। शोर खूब मचाते थे लेकिन कार्रवाई पर चुप्पी थी। भीतरखाने में चल रहा था-तुम खाओ हम खाएं तुम भी खुश हम भी खुश। लेकिन बीच बीच में प्रचारकी वाला हमला हो गया। दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जो घर-बार छोड़ बिना परिवार वाले हुए। पिछले कुछ काल खण्ड से देखने में आ रहा है। आरोपित, जमानतवाले और जेल की हवा वाले सभी इकट्ठा होने लग जाते हैं। मौसेरे भाई। देश के पैसे की चोरी, टैक्स चोरी, राजस्व चोरी, घोटाले, भ्रष्टाचार, आतंकवाद। अटल जी के शब्दों में कहें तो घोटाले पर घोटाला, घटा टोप घोटाला। फिर समय ने करवट ली। तोता पिंजड़े से उड़ा, सुप्रीम कोर्ट के कहने पर उन फलों को खोज निकाला जो निगले जा चुके थे। अतड़ियों में पड़े फलों को ढूंढ निकाला। जब परतें खुलने लगी तो एक विशेष प्रकार की एकता देखने को मिलने लगी। लिस्टेड एक ने दूसरे लिस्टेड का दामन थामा, कहा तुम मेरे बारे में बोलो मैं चोर नहीं मै तुम्हारे बारे में ऐसा ही। खूब बोलो। फिर कुछ लोगों को सही, लग ही जाएगा कि कुछ ठीक बोल ही रहे होंगे। बस फिर क्या था, मौसेरे भाई और मौसेरी बहनें लावा भूजने को जुटने लगी, समारोह जमा कर।