शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

प्रधानमंत्री बनाम प्रधान मंत्री

मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में सदन में सांसद, नाटकीय विरोधों का सिलसिला, सांसदों की बेपरमान वेतन वृद्धि, यही कुछ 1 लाख 6 हजार वेतन भत्ते मिलाकर प्रतिमाह, किसका पैसा है और किसे मिलेगा। उनका पैसा है जो दिन रात काम में जुटे हुए हैं और जुते हुए हैं। मिलेगा उनको जिनका जीवन सभी के सामने अब खुलता ही जा रहा है। साल भर में तो इन लोगों को अरबों मिल जाएगा। देश की जनता को क्या मिलेगा। योजनाओं का आश्वासन। कांग्रेस जिनके बदौलत खड़ी है यानि सोनिया और राहुल जी, तो राहुल जी कालाहांडी में कह गये हिन्दुस्तान के भीतर दो हिन्दुस्तान है। अमीर अमीर होते जा रहे हैं और गरीब दिनों दिन गरीब होते जा रहे हैं। उन्हें सांसदों के वेतन भत्ते से कुछ भी लेना देना है या नहीं। मनमोहन जी आर्थिक नीति पर 1996 में ही कई लोग बोल रहे थे कि इस आर्थिक नीति से यही होने वाला है। उस समय ऐसे लोगों की आलोचना कर कांग्रेस वाले अब राहुल यही बात बोल रहे हैं तो क्या कहेंगे कांग्रेस वाले। ऐसा नहीं है कि मनमोहन के खिलाफ कोई टिप्पणी की गई है बल्कि खुद को कुछ अलग साबित करने के लिए एक बात उठाई गई है। मनहमोहन जी सातवीं बार लाल किला में चढ़े हैं। अमीरिकी साप्ताहिक ने जबरदस्त बड़ाई कर दुनियां का श्रेष्ठ प्रधानमंत्री तक कह दिया है, लेकिन विकास को लेकर भारत को 78 वें पादान पर धकेल रखा है। यानि पीएम अगर बधाई के पात्र है तो उनके कार्य इतने दिनों में बधाई को एक जुमला पाने लायक क्यों नहीं हुआ। आर्थिक ताकत के रूप में चीन उभर गया और जापान को दूसरे नंबर पर धकेल दिया। भारत में प्रतिभा का पलायन है तो यही प्रतिभा दूसरे देशों में खूब फल-फूल रही है, क्यों? सवाल कई हैं। जबाव भी कमोवेश जनता जानती ही है। जबाव देना जानती है या भूल गई, इसपर थोड़ा अध्ययन जरूरी हो चला है।

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