सोमवार, 23 अगस्त 2010

रक्षाबंधन का त्यौहार

रक्षाबंधन का त्यौहार। गाना बहुत जोरों से चला। बहना ने भाई की कलाई पो हो sssssss ssssss . मेरे भैया मेरे चन्दा..........। बाजार में रंग विरंगी राखियों का जमाना लद गया।
जब हम बच्चे थे
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल ते नित्वानि प्रति बद्धानानि रक्षा मा चल मा चल।
कुछ तो महा महा यानि वहां वहां चलॉ भी बोल समझ लेते थे।
घर में एक पुरोहित जी राखी बाधने आते थे। समाज को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। वे इसबात को जानते थे या नहीं जानते थे लेकिन राखी बांधते थे। कभी कभी भोजन भी करते थे.. या फिर दान दक्षिणा ले जाते थे।
जब थोड़े बड़े हुए। कहानी पढ़ी कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी तब से रक्षाबंधन मनाया जाता है।
थोड़े और बड़े हुए
राखी हुमायूं ने बांधी थी या नहीं यह तो पता नहीं चला लेकिन चित्तौड़ में जौहर जरूर हुआ था।
और अब,
ये त्यौहार भाई बहन का हो गया। कुछ पुराने लोग भी मनाते दिखते हैं लेकिन झिझक के साथ।
नई पीढ़ी में भाई बहन का रक्षाबंधन खूब चल रहा है।
पितामह मौन हैं। दायरा त्यौहार का सिमट कर कोई और रूप ले चुका है। मीडिया को पुर्सत नहीं। पुरोधा को हिम्मत नहीं।
रक्षा किसकी करनी और कौन करेगा पता नहीं।
क्यों न,
भाई बहन के त्यौहार को अपनी जगह तर्जी देते हुए उस सामाजिक मूल्य को भी जागृत करें।

2 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

विचारणीय प्रस्तुति.... रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाये....

ASHOK BAJAJ ने कहा…

रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई !!