सोमवार, 30 अगस्त 2010

एसपी की पिटाई, सर्च ऑपरेशन रोकने के लिए धमकी

लखीसराय में नक्सलियों ने कहर बरपाया। 7 जवान शहीद हो गए। 400 जवान सर्च ऑपरेशन में लगे हैं। लेकिन ये लोग घटना के 20 घंटे बाद लखीसराय के कजरा के पास की पहाड़ी तक पहुंचे। हेकिकॉप्टर से कुछ पदाधिकारी भी आए हैं। इसबीच पुलिस मेन्स एसोसिएशन के लोगों ने एसपी अशोक कुमार सिंह को पीट दिया। कारण जो भी रहा हो। प्रमुख बात ये थी कि कई जवानों का शव 24 घंटे तक नहीं उठाया जा सका था। थाना प्रभारी भी शहीद हो गए। रविवार को हमला हुआ और समय पर पुलिस को कहीं से कोई मदद नहीं मिल सकी। अब नक्सलियों ने सर्च ऑपरेशन रोकने के लिए भी धमकी दे दी कि उनके कब्जे में चार पुलिस वाले हैं। नक्सलियों का कहर अब झारखंड की जगह बिहार में बरप रहा है। कैमूर में शांति सेना के 22 लोगों को अगवा किया गया लेकिन वे सभी छुड़ा लिये गए। चार नक्सली भी पकड़े गए। हाजीपुर में एक गांव पर ही इन लोगों ने हमला कर दिया। गांव वालों ने गोली का सामना पत्थरों से किया। नक्सली भाग गए। पूर्वी चंपारण में 25 नक्सलियों ने एक मोबाइल टावर को उड़ा दिया, कर्चमारियों को पीट दिया। शिवहर में बीडीओ मनोज कुमार का अपहरण कर लिया और प्रशासन से बार्गेनिंग की। सोमवार को उन्हें रिहा कर दिया। सवाल है कि ये लोग चाहते हैं क्या हैं। चुनाव के समय इसतरह की गतिविधि कैसे बढ़ गई। कौन सह दे रहा है कि राज्य में अशांति करो तो सत्ता की बागडोर किसी के हाथ से खिसक कर किसी और के हाथ में आ जाए। अनानक बढ़ गई नक्सली गतिविधियों को सिरे से समझने की जरूरत है।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

भगवा आतंक और चिदंबरम-पवार-अर्जुन

भगवा आतंक saffron terror एक नया शब्द गढ़ा चिदंबरम ने। सोचा था शरद पवार की तरह चल जाएगा सिक्का या फिर थोड़ा बहुत हल्ला होकर रह जाएगा। बाद में मीडिया में नाम आएगा कि पवार ने एक नाम दिया फिर उससे आगे बढ़कर चिदंबरम ने एक नाम निकाला। बुधवार को राज्यों के डीजीपीगणों से बात कर रहे थे चिदंबरम कि नक्सली समस्या और आतंकवाद से लोगों परेशान हैं लेकिन ऐसा लगा कि सारे आतंक भूल कर एक ही आतंक याद रह गय़ा वो था इनके सत्ता खोने का आतंक। पवार और अर्जुन सिंह का मिला जुला संस्करण बनने की कोशिश में दूबे बन कर बैठ गये हैं। कांग्रेस ने बोलबाया और रणनीति के तहत पीछ हट गई। क्योंकि बयान के तीसरे दिन जनार्दन द्विवेदी कहते हैं कि चिदंबरम को सोच समझ कर बयान देना चाहिए। कांग्रेस ने इस शब्द को गिरा कर नब्ज टटोलने की कोशिश की है कि आखिर किस हद तक हो सकता है और विरोध और कहां कहां हो सकता है विरोध। दूसरे राममंदिर पर कोर्ट का फैसला आने का समय आ रहा है। तीसरे, महंगाई पर रोज रोज नियंत्रण के पीएम के भाषण के वावजूद महंगाई बढ़ ही रही है, वहां से भी लोगों को डायवर्ट करना था। पांचवां, कश्मीर लगातार जल रहा है जिससे लोगो में गुस्सा स्वाभाविक है। छठा, बीजेपी के साथ परमाणु मसौदे पर सांठ गांठ का हल्ला। इसके अलावे कुछ और कारण भी हैं। इस शब्द के बाद विपक्ष के कई नेता जो कांग्रेस के खिलाफ बक रहे थे उन्हें सटने सा मौका मिला। बीजेपी से दूरी बढ़ाने में कामयाबी मिली। सदन में अचानक नए मुद्दे उठे। यानि कुछ दिनों तक जन असंतोष को संठ करने में इस बयान का तो लाभ मिल ही गया।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

प्रधानमंत्री बनाम प्रधान मंत्री

मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में सदन में सांसद, नाटकीय विरोधों का सिलसिला, सांसदों की बेपरमान वेतन वृद्धि, यही कुछ 1 लाख 6 हजार वेतन भत्ते मिलाकर प्रतिमाह, किसका पैसा है और किसे मिलेगा। उनका पैसा है जो दिन रात काम में जुटे हुए हैं और जुते हुए हैं। मिलेगा उनको जिनका जीवन सभी के सामने अब खुलता ही जा रहा है। साल भर में तो इन लोगों को अरबों मिल जाएगा। देश की जनता को क्या मिलेगा। योजनाओं का आश्वासन। कांग्रेस जिनके बदौलत खड़ी है यानि सोनिया और राहुल जी, तो राहुल जी कालाहांडी में कह गये हिन्दुस्तान के भीतर दो हिन्दुस्तान है। अमीर अमीर होते जा रहे हैं और गरीब दिनों दिन गरीब होते जा रहे हैं। उन्हें सांसदों के वेतन भत्ते से कुछ भी लेना देना है या नहीं। मनमोहन जी आर्थिक नीति पर 1996 में ही कई लोग बोल रहे थे कि इस आर्थिक नीति से यही होने वाला है। उस समय ऐसे लोगों की आलोचना कर कांग्रेस वाले अब राहुल यही बात बोल रहे हैं तो क्या कहेंगे कांग्रेस वाले। ऐसा नहीं है कि मनमोहन के खिलाफ कोई टिप्पणी की गई है बल्कि खुद को कुछ अलग साबित करने के लिए एक बात उठाई गई है। मनहमोहन जी सातवीं बार लाल किला में चढ़े हैं। अमीरिकी साप्ताहिक ने जबरदस्त बड़ाई कर दुनियां का श्रेष्ठ प्रधानमंत्री तक कह दिया है, लेकिन विकास को लेकर भारत को 78 वें पादान पर धकेल रखा है। यानि पीएम अगर बधाई के पात्र है तो उनके कार्य इतने दिनों में बधाई को एक जुमला पाने लायक क्यों नहीं हुआ। आर्थिक ताकत के रूप में चीन उभर गया और जापान को दूसरे नंबर पर धकेल दिया। भारत में प्रतिभा का पलायन है तो यही प्रतिभा दूसरे देशों में खूब फल-फूल रही है, क्यों? सवाल कई हैं। जबाव भी कमोवेश जनता जानती ही है। जबाव देना जानती है या भूल गई, इसपर थोड़ा अध्ययन जरूरी हो चला है।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

32 साल का स्कूली छात्र

32 साल का डील सिंह अपने बच्चों के साथ स्कूल जाने लगा। वह आठवीं क्लास में पढ़ता है। मध्यप्रदेश के डिडौरी जिले का रहने वाला है डील सिंह। पत्नी भी पढ़ाई में सहयोग करती है। पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। जिले के कलक्टर ऐसे छात्रों को सम्मान देना चाहते हैं ताकि लोगों को प्रेरणा मिले।
ऐसे कई उदाहरण है लेकिन आठवीं से अपनी पढ़ाई करने के उदहरण बिरले ही मिल सकते हैं। आम तौर पर अपनी बड़ी पढ़ाई में बड़ी डिग्री जोड़ने के लिए तो लोगों को बार बार पढ़ते जरूर देखा है लेकिन एक बार बचपन में पढ़ाई छोड़ने के बाद फिर से वहीं से शुरू करना आसान काम नहीं था। निश्चय ही डील सिंह बधाई के पात्र हैं और समाज के लिए प्रेरणा भी हैं।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

रक्षाबंधन का त्यौहार

रक्षाबंधन का त्यौहार। गाना बहुत जोरों से चला। बहना ने भाई की कलाई पो हो sssssss ssssss . मेरे भैया मेरे चन्दा..........। बाजार में रंग विरंगी राखियों का जमाना लद गया।
जब हम बच्चे थे
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल ते नित्वानि प्रति बद्धानानि रक्षा मा चल मा चल।
कुछ तो महा महा यानि वहां वहां चलॉ भी बोल समझ लेते थे।
घर में एक पुरोहित जी राखी बाधने आते थे। समाज को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। वे इसबात को जानते थे या नहीं जानते थे लेकिन राखी बांधते थे। कभी कभी भोजन भी करते थे.. या फिर दान दक्षिणा ले जाते थे।
जब थोड़े बड़े हुए। कहानी पढ़ी कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी तब से रक्षाबंधन मनाया जाता है।
थोड़े और बड़े हुए
राखी हुमायूं ने बांधी थी या नहीं यह तो पता नहीं चला लेकिन चित्तौड़ में जौहर जरूर हुआ था।
और अब,
ये त्यौहार भाई बहन का हो गया। कुछ पुराने लोग भी मनाते दिखते हैं लेकिन झिझक के साथ।
नई पीढ़ी में भाई बहन का रक्षाबंधन खूब चल रहा है।
पितामह मौन हैं। दायरा त्यौहार का सिमट कर कोई और रूप ले चुका है। मीडिया को पुर्सत नहीं। पुरोधा को हिम्मत नहीं।
रक्षा किसकी करनी और कौन करेगा पता नहीं।
क्यों न,
भाई बहन के त्यौहार को अपनी जगह तर्जी देते हुए उस सामाजिक मूल्य को भी जागृत करें।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

फिर महंगाई पर नियंत्रण करेंगे मनमोहन

एक फिर मनमोहन सिंह महंगाई पर नियंत्रण करेंगे। हालांकि ये बयान आज का नहीं है। यह बयान उस समय का भी है जब यूपीए सरकार के 100 दिन पूरे हुए थे। क्योंकि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने चुनावी घोषणा की थी कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं तो 100 दिनों के भीतर महंगाई पर काबू पा लेंगे। लेकिन सत्ता में आने से 100वें दिन उन्होंने कहा कि महंगाई पर नकेल मुमकिन नहीं लेकिन वे जल्द ही कुछ उपाय करेंगे। प्रधानमंत्री उपाय करते रहे, महंगाई बढ़ती रही। योजनाओं की घोषणा करते रहे और य़ोजनाओं के पैसों को नौकरशाह की जेब में डालते रहे, महंगाई बढ़ती रही। लोकसभा में विपक्ष ने सवाल उठा दिया, अवरोध खड़ा कर दिया तो फिर बयान आया कि महंगाई को रोकने की कोशिश करेंगे। 64वें स्वतंत्रता दिवस मौके पर जब सारे देशवासी लाल किला से किसी मजबूत कदम की प्रतीक्षा कर रहे थे तो फिर वहीं बयान आया कि महंगाई कम करने की कोशिश करेंगे। वे घोषणाएं करते जा रहे हैं और महंगाई बढ़ती जा रही है।

रविवार, 8 अगस्त 2010

प्रेमी युगल की जिन्दगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था

इसबार कोई सेक्यूलर नेता बोल नहीं रहा। इसबार इंडिया गेट पर कोई मोमबत्ती जुलूस नहीं निकला। प्रेमी जोड़े भागते फिर रहे हैं। आगरा के जुनैरा कमाल ने अरूण सिंह से शादी रचा ली है। आगरा कैंट के बीएसपी विधायक जुल्फीकार भुट्टो पर धमकाने का आरोप लगा है। विधायक के आदमी उन्हें खोजते हुए मुंबई तक पहुंच गए थे लेकिन मुंबई पुलिस ने दोनों के सर्टिफिकेट देख कर विधायक के लोगों को ही फटकार लगा दी। इधर, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन दोनों के पक्ष में फैसला दिया है और आगरा के एसपी को इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी है। भारतीय संविधान के तहत ये लोग पति पत्नी हैं और इन्होंने कोई गलती नहीं की है फिर भी इनके पीछे लोग क्यों पड़े हैं। केवल इसलिए कि लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू। सवाल उठता है इनकी ओर से आवाज क्यों नहीं उठ रही। जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी क्या है और मुख्यमंत्री मायावती अपने विधायक पर नकेल नहीं कस पा रही हैं। जुनैरा और अरुण भागते फिर रहे हैं। आगरे का ताजमहल को तो लोग प्यार के नाम से ही जानते हैं लेकिन इसी आगरे के प्रेम दूसरे शहरों में दर दर की ठोकरें खा रहा है। कभी जयपुर तो कभी मुंबई तो कभी लखनऊ और उनके पीछे लगे हैं कुछ गुर्गे। तसलीमा का केस हो या कोलकाता के तोदी परिवार का, आवाज तो खूब उठी थी और सरकारें भी आगे बढ़ कर काम करती दिखीं। निरुपमा के केस में भी खूब मोमबत्ती मार्च हुआ लेकिन जुनैरा और अरूण के मामले में चुप्पी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है। इस मामले में आगरा पुलिस की भूमिका भी गजब की है। क्या पुलिस को भी भारतीय संविधान का पता नहीं? ऐसी पुलिस पर कैसे आम जनता भरोसा करे?

रविवार, 1 अगस्त 2010

रेलवे में भ्रष्टाचार का बोलबाला

रेलवे का मतलब भ्रष्टाचार हो गया है। स्टेशन मास्टर, टीटीई, जीआरपी, बाप रे बाप! रेलवे आम लोगों के लिए समस्या बन गई है। कई बार ऐसा लगता है कि रेल की यात्रा कहीं अंतिम यात्रा न हो जाए। अगर अंतिम यात्रा न भी हो तो वहां टीटीई नाम के यमराज आपको जरूर मिल जाएंगे। उससे भी बच निकले तो जीआरपी नाम के यमदूत से बचना मिश्किल है। इन सबकी कारगुजारियों से सभी को पाला पड़ जाता है। रिजर्वेशन नहीं है तो टीटीई छोड़ेंगे नहीं। गजब का भ्रष्टाचार है रेलवे में। प्लेटफॉर्म पर छोटी दूरी के लिए टिकट पर आरक्षण लेना हो तो आरक्षण चार्ज के अलावा टीटीई को अलग से सलामी चाहिए। वेडर्स भी परेशान हैं। उनसे पूछिए कि तुम्हारे सामान का दाम आमतौर पर दुकानों पर के दाम से डेड़ गुना क्यों है को वो यही कहेगा कि स्टेशन पर पैसे देने पड़ते हैं। आपके पास कुछ ज्यादा सामान दिख जाएं तो सुरक्षा के नाम पर जीआरपी मनमानी पर उतर जाएंगे और ठीकठाक रकम उगाह कर ही छोड़ेंगे। हां सचमुच किसी को कोई परेशानी हो जाए। बीमार पड़ जाए तो इससे इन लोगों को कोई मतलब नहीं रहता। ये सभी लोग भी उपर की दुहाई दे देते हैं कि हमें भी कहीं जमा करना पड़ता है। नए बहाल टीटीई के जलवे कुछ ज्यादा ही दिखाई देते हैं जैसे ये मान कर चल रहे हैं कि जब है जी..जी भर के पी। स्लीपर के यात्री भगवान भरोसे हैं। न तो शौचालय की हालत ठीक रहती है, न बेसिन में पानी आता है, न ही कहीं सफाई का नाम मिलता है और ना ही बर्थ सुरक्षित रहता है। जेनरल की बात तो दूर की है। एसी वाले को थोड़ी राहत है। रेलवे के कर्मचारियों में एक खास बदलाव देखने को मिल रहा है। ये लोग अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद इतने रहते हैं कि आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सवाल उठता है कि आखिर कैसे हो रही है बहाली और कौन लोग किस कटगरी के है जो ऐसे है कि उन्हें काम से लेना देना कम रह गया है।