शनिवार, 20 अगस्त 2011

सिब्बल का दर्द, जनता के हमदर्द!

कपिल सिब्बल की बात को हमेशा याद रखना पड़ेगा। अन्ना की गिरफ्तारी के बाद राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही को याद रखना पड़ेगा। याद रखने लायक है ऐसा नहीं बल्कि याद रखना पड़ेगा। सिब्बल का बयान था सदन में उपस्थित सभी लोगों के लिए अर्थात् सभी सांसदों के लिए अथवा सांसदों के माध्यम से बाकी सभी नेताओं के लिए कि आप सभी अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। अन्ना को समर्थन का मतबल नेता अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। अन्ना की गिरफ्तारी का विरोध का सीधा सीधा मतलब अन्ना को समर्थन के रूप में ही देखा गया। सिब्बल का दर्द था या फिर सिब्बल की जीन्दगी का टूटता उद्देश्य, वे कह रहे थे कि एक बात समझ लीजिए कि आप लोग अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। अर्थात् अगर अन्ना की ओर चले, भ्रष्टाचार पर हमला किया तो कुल मिलाकर घाटा आपको ही है अर्थात् नेताओं सांसदों को ही है। सिब्बल की मंशा क्या हो सकती है- कि आज हम सरकार में हैं कल हो सकता है कोई दूसरा दल रहे लेकिन सदन और नेतागिरी के भीतर से जो कुछ सुविधाएं और खेल वे कर सकते हैं, वो तो जारी रहेगा। संसद ऊपर है इसलिए यहां पहुंचने वाले भी स्वयं को जनता से ऊपर मानने लगते हैं। अब इस वर्चस्व पर आधात होने का भय सिब्बल को सता रहा है। इसलिए उन्होंने कहा था कि हम ही नहीं आप लोग सुविधा भोग रहे हैं। हम यहां आमने-सामने हैं तो क्या हुआ। आज समय आ गया है कि पक्ष-विपक्ष मिलकर अन्ना से निपट लेते हैं ताकि आने वाले समय में फिर अपनी सत्ता जमी रहे। प्रश्न उठता है कि देश में सर्वाधिक भ्रष्टलोग कौन हैं तो उत्तर इन्हीं तथाकथित खादीधारियों की ओर जाता है। उसके बाद ही अधिकारियों की बात हो सकती है। यह सच है कि नेताओं को खेलना भी अधिकारी ही सिखाते हैं लेकिन यह भी सच है कि नेताओं को इस खेल में कुछ खास नहीं करना पड़ता है, सदन में आवंटन पर चर्चा हुई, पारित हुआ, पहुंच गया इनके पास और लोगों तक जाते जाते क्या होता है यह बताने की जरूरत नहीं। घोटाले होते हैं तो पहले अधिकारी पकड़े जाते हैं लेकिन जड़ में नेता होते हैं यह बात खुलते खुलते आमतौर पर दब ही जाती है, कुछ ही खुल पाती है। सिब्बल या कांग्रेस की व्यथा यहीं से शुरू होती है। इन सांसदों को देखने वाला नापने वाला और निगरानी रखने वाला अगर कोई हो गया तो क्या होगा? ये लोग सदन में संन्यास भाव से तो आए नहीं हैं। इनमें ज्यादातर लोगों की जिन्दगी कई कई उपन्यास हैं। इसलिए सिब्बल सांसदों को उसकाने और सुलगाने की कोशिश की-हमाम में हम सभी है। उस पार न जाने क्या होगा? अन्ना की ओर मत बढ़ो ये रास्ता कुल्हाड़ी की ओर जाएगा और आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगे। इसका दूसरा पक्ष बड़ा भयावह है। जनता के बीच हितैषी बनने वाले स्वयं को अलग रूप में रखते हैं और उन्हें जनता के बीच ही जनता की बातों से लेना देना रहता है। वास्तविक जिन्दगी... सबको ध्यान देना पड़ेगा।

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