सोमवार, 22 अगस्त 2011

कई अन्ना की जरूरत अभी और पड़ेगी


राजीव रंजन विद्यार्थी, प्रोड्यूसर, सहारा समय

74 साल के अन्ना ने अनायास ही भोजपुर (बिहार) के स्वंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह जी की याद दिला दी है। 80 साल की बूढ़ी हड्डी में जो जोश कुंवर जी का था, वही जोश अन्ना हजारे जी में भी दिख रहा है। अन्ना ने अनशन के जरिए एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि जोश युवा शरीर में नहीं बल्कि संकल्प-शक्ति में होती है। मजबूत इरादों में होती है। अन्ना में न केवल वो संकल्प शक्ति दिखी है, बल्कि युवाओं को कैसे एकजुट किया जाता है? इस नब्ज को भी परखा है। युवा कल की ताकत हैं। इस ताकत को जैसे चाहें इस्तेमाल कर लें, लेकिन, ये भटकना नहीं चाहता। भटकाव के रास्ते पर चलते-चलते युवा इतना थक चुका है कि वो अन्ना के साथ चल पड़ा है। काश! अन्ना की ये शक्ति राजनीतिक चश्मे वालों को भी दिख जाती। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही नहीं, सरकार के कई मंत्री भी बूढ़े हो गये हैं। वर्ना क्या वो अन्ना की तरह नहीं होते! उनमें ये शक्ति है ही नहीं। या फिर वो राजनीतिक चश्मे की वजह से ये सब देखना नहीं चाहते। न जाने वो इस देश को क्या देकर जाना चाहते हैं! वो भारत के प्रतिनिधि हैं। भारत जो चाहता है, जो जनता चाहती है। वो उसे छोड़कर अपनी पार्टी और अपनी चाहत को पूरा करना चाहते हैं। ऐसी ढीठाई का ही नतीजा हैं, अन्ना, उनकी टीम और देश के करोड़ों युवा। लेकिन, नक्कारखाने में तूती बोले या तंबूरा, फर्क क्या पड़ता है ? हजारे के बैठने के बाद नेता दनदनाकर उठ खड़े हुए हैं। उनके बैठने के बाद नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं हैं। उन्हें हराने के लिए हजारों हथकंडे जोड़े जा रहे हैं। कुछ तो नसीहतें भी दे रहे हैं। हजारों रातें, हजारों दिन देखने वाले हजारे को हाथ में कर लेना इतना आसान थोड़े है। समाज का हर शख्स जिनके दिल में थोड़ी-सी भी ईमानदारी की तमन्ना है वो आज अन्ना के साथ है। अन्ना के साथ एक नहीं अनेक है, एक दूसरे को ये कहते हुए कि कब तक घूस दोगे? कब तक तलवे चाटते रहोगे। चमचागिरी करके बढ़ते रहोगे ? कब तक बेइमानों के बीच ईमानदारी की दुहाई देकर दाल-रोटी के लिए जूझते रहोगे? नेता से लेकर नौकरशाह तक जहां चमचागिरी और चूना लगाने की परिपाटी हो, वहां एक अन्ना की हिम्मत बड़ी काम आई। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की ये मुहिम इस मायने में और अहम हो गयी है कि दमघोटू माहौल में अन्ना जैसे लोगों ने दम तो दिखाया ! किसी ने करोड़ों लोगों के दिल में दबी जुबान को हिलने का खम तो दिया ! इस खम से देश के सामने आज करोड़ों लोग खम्भे की भांति सरकारी लोकपाल बिल के विरोध में उठ खड़े हुए हैं। देश में कानून की कोई कमी नहीं है। लेकिन, कानून को अपने हिसाब से मोड़ने वाले नेताओं के लिए अन्ना आज अभेद बन गए हैं। बड़े शर्म की बात है कि उम्र के इस पड़ाव में सरकार एक ईमानदारी भारतीय की ईमानदारी की परीक्षा ले रही है। उसे भूखे रहने पर मजबूर कर रही है। सत्याग्रह को दुराग्रह साबित करने पर तुली हुई है। मिल बैठकर जो सही हो, उसे करने पर आपत्ति क्या है? सरकार के रुख से साफ हो गया है कि आज तक जनता के मतलब की केवल बात होती रही है। जनता की ओर से चुनी गई सरकार भले बनती रही हो। वो केवल अपना फायदा देखती रही है। वर्ना क्या बात है कि सरकार अड़ियल हो गयी है। नक्सलवाद और माओवाद के साथ गरीबी के पनपने के पीछे सरकारी अड़ियलपन ही जिम्मेदार है। ये अब कहने में कोई गुरेज नहीं। मतलब से मतलब रखना यही नेताओं की सोच रही है। अन्ना की तरह कोई नेता भूखे रहकर देखे, कि भूख क्या होती है? अन्ना की तरह कोई नेता सोच कर देखे कि चिन्ता क्या होती है? अन्ना की तरह कोई नेता रह कर देखे कि मुफलिसी क्या होती है? अन्ना की तरह कोई अनशन करके देखे कि आंदोलन क्या होता है? अन्ना की तरह कोई जी कर देखे कि जिन्दगी क्या होती है? अन्ना की तरह बोलकर देखे कि बात कैसे बनती है? अन्ना की तरह कोई सो कर देखे कि नींद कैसे हराम होती है? यकीन के साथ कहता हूं कि आज कोई भी नेता ऐसा नहीं करेगा। क्योंकि ये नेता केवल दिखावे के हैं। हथकंडों के सहारे जीते है। हथकंडों के लिए जीते और मरते हैं। लेकिन, ऐसे जीने-मरने वालों के एक लिए हजारों नहीं एक अन्ना हजारे ही काफी है। तो कल के नेताओं अन्ना की तरह त्याग सीख लो। क्योंकि मूक-बधिरों को जगाने के लिए ऐसे कई अन्ना की जरूरत अभी और पड़ेगी।

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

काश! अन्ना की ये शक्ति राजनीतिक चश्मे वालों को भी दिख जाती।