बुधवार, 10 अगस्त 2011

एक खूबसूरत नाटक और सही


पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का नाम.........। हिना के विदेश मंत्री के रूप में भारत दौरे से ज्यादा चर्चा हो रही है, उनकी खूबसूरती की। सबसे कम उम्र की, सबसे ग्लैमरस मंत्री होने की। ग्लैमर किसे नहीं भाता? भारत खूबसूरत है और उसे खूबसूरती पसंद है। कूटनीति और वैदेशिक नीति की वजह से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी खूबसूरत नहीं हुए। पाकिस्तान से आतंकवाद को रोकने की पहल होती हुई नहीं दिखी। एक कट्टर और जिद्दी पड़ोसी की तरह तेवर में तल्खी बरकरार रखी। हां, अमेरिका और दूसरे राष्ट्रों को दिखाने की खातिर वो भारत आने जाने का सिलसिला कभी बंद नहीं किया। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के फर्ज को निभाते हुए भारत ने सदैव विदेश मंत्रियों और राजदूतों का आतिथ्य-सत्कार किया। लेकिन, मिला क्या? कश्मीर में अलगाव को बढ़ावा देने की कोशिशें बंद नहीं हुईं। आतंकी गतिविधियां बंद नहीं हुईं। महज 34 वर्षीय हिना रब्बानी खार, अपने से 45 वर्ष बड़े भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा से दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने के मुद्दे पर अपने देश आयीं। बुधवार को हुई बातचीत को सकारात्मक बताया गया। जैसा कि हर विदेश मंत्री के साथ हुई वार्ता के बाद बताया जाता रहा है। व्यापार को लेकर जो बातचीत हुई उसमें जम्मू-कश्मीर से जुड़े स्थानीय व्यापार की अवधि बढ़ाने की बात हुई। हफ्ते में दो दिन के व्यापार को बढ़ाकर चार दिन जाएगा। साथ ही धार्मिक स्थलों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के मसले पर बातचीत हुई। लेकिन, आतंकवाद के मसले पर कोई सार्थक बातचीत नहीं हुई। मुम्बई हमले के आतंकियों की आवाज से जुड़े नमूने दिए जाने की मांग को पाक विदेश मंत्री ने नकार दिया। गौर करने वाली बात ये है कि पाक विदेश मंत्री हिना का भारत दौरा ऐसे वक्त हुआ है जब कुछ ही दिनों पहले मुम्बई में सीरियल ब्लास्ट हुए। भारत सरकार ने इसे आतंकी घटना करार दिया। इस मामले में कुछ आतंकी पकड़े भी गये। जिनका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा बताया गया। इस मसले पर सरकार की बातचीत में क्या हुआ? भारत के विदेश मंत्री के हवाले से देश को बताने की कोई जहमत नहीं हुई। ये भी नहीं बताया गया कि संसद पर हुए हमले और मुम्बई पर इससे पहले होटल ताज पर हुए हमले के आतंकियों के अलावा कई कांडों में संलिप्त करीब पचास आतंकियों की लिस्ट पाकिस्तान को सौंपी गयी है। उस मसले पर क्या हुआ? मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तान आतंकी कसाब पर अरबों रुपये खर्च हो चुके हैं। उसका करना क्या है? ताउम्र उसे रखना है, जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे पाकिस्तान आतंकी की सुरक्षा और सेवा में लगा देना है? इसका जवाब भी किसी तरफ से नहीं आया। घाव पर घाव, घात पर घात फिर लगाव कैसा? ये भी दीगर बात है कि पाकिस्तान का ये दौरा बड़ी कूटनीति का हिस्सा भी है। मसलन कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान ने अपनी परमाणु शक्ति बढ़ाई है। उसने परमाणु क्षमता से लैस हत्फ-9 का सफल परीक्षण किया है। जिसे लेकर वायुसेना अध्यक्ष पी वी नाइक ने पाकिस्तान को चेतावनी दे रखी है कि अगर भारत पर परमाणु हमला हुआ तो इसका जवाब काफी भयानक होगा। साफ है पाकिस्तान की तरफ से हाथ तो मिलते रहे हैं, लेकिन, दिल में उतरकर कभी कोई नहीं मिला। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में लाल कृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान जाकर भी पहल की। लेकिन, हुआ क्या?
हिना रब्बानी खार के भारत दौर को दूसरे दौरे सिर्फ इस मायने में अलग करते हैं कि पहली बार महिला विदेश मंत्री ने दोनों देशों के रिश्ते को सुधारने की पहल की है। पहल का भारत सम्मान करता रहा है और करेगा। लेकिन, सम्मान के बाद कोई संगीन भोंक दे तो उसके क्या कहेंगे? देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को लेकर देश के राजनेता भी राजनीति नफा नुकसान देखते हों। वहां कितने फैसले होंगे। समझा जा सकता है।
हिना जी की चर्चा विदेश मंत्री होने और भारत दौरे से ज्यादा उनके फेसबुक आईडी पर हर मिनट 30 लोगों के दोस्त बनने से अनुग्रह की हो रही है। बहरहाल, हिना जी चहेते विदेश मंत्री भले हों। लेकिन, उनकी अच्छाई तब और निखर कर आएगी जब वो भारत और पाकिस्तान कटु रिश्ते को सुधारने के लिए कठोर फैसले भी करें। पाकिस्तान के अड़ियल रवैये और पल में शोला बनने की फितरत क्या उन्हें ऐसा करने देगी? काबिलियत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती। हिना का पद दोनों देशों के दोस्ताना रिश्ते को बेहतर बनाने में सक्षम है, लेकिन, क्या उनका अपरिपक्व अनुभव क्या ऐसा करने देगा? हिना के इस दौरे से कुछ हो न हो, इतना जरूर हुआ है कि भारत ने हिना के व्यवहार ने एक उम्मीद जगा दी। हिना इस उम्मीद में कितना रंग भरती है। ये देखने वाले बात होगी? क्योंकि पाकिस्तान से दोस्तान संबंध की चाहत विभाजन के बाद से ही रही है। लेकिन, रिश्ते में तल्खी कम होने के बजाय बढ़ी ही हैं। दूरी भले रही हो, दौरे होते रहे हैं। भारत दाएं चलता है तो पाकिस्तान बाएं। इस वक्रीय चाल की वजह से ही आज तक कोई भी पहल सकारात्मक नहीं हुई। हिना का ये दौरा चमकदार दिख रहा है। लेकिन, यही भारत है जिसने दुनिया को बताया है कि हर चमकती हुई चीज सोना नहीं होता। हिना का ये दौरा क्या रंग लगता है। बस देखते रहिए। क्योंकि, दोनों देशों के राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से सत्ता की कसौटी पर रिश्तों को लेकर आगे बढ़ते और पीछे हटते रहे हैं। जहां हटने के लिए सटने का नाटक होता रहे, वहां एक खूबसूरत नाटक और सही।
-राजीव रंजन विद्यार्थी, प्रोड्यूसर, सहारा समय

कोई टिप्पणी नहीं: