गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

10बूथ पर मतदान बहिष्कार, कोई हिंसा नहीं, पहला चरण

बिहार विधानसभा का पहला चरण सम्पन्न हो गया। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान किसी तरह की कोई हिंसा नहीं हुई है। बूथ लूट की खबर भी नहीं है लेकिन एक बड़ी बात ये हुई कि चुनावी इतिहास में बिहार पहला ऐसा राज्य होगा जहां केवल 47 सीटों के चुनाव में 10 बूथों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार कर दिया। मतदान का बहिष्कार पंचायत या प्रखंड स्तर या गांव स्तर पर भी नहीं है बल्कि बूथ स्तर पर है। इसमें दोनों ही बातों हो सकती हैं। विकास का सरकार का दावा खोखला है या फिर आस पास विकास दिखा लेकिन जिन जगहों पर बिल्कुल नहीं दिखा वहां के लोगों ने वोट का बहिष्कार कर दिया। लेकिन अच्छी बात यह थी कि चुनाव में हिंसा के लिए जाना जाने वाला बिहार इसबार हिंसा से दूर रहा। अब नेतागण एक दूसरे को क्रेडिट और डिसक्रेडिट देते रहें लेकिन लोगों ने अपनी जिन्दगी की रक्षा कर ली है।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

कांग्रेस आरजेडी के गलबांही का इन्तजार करें

आज फिर राजद अपनी हालत पर आ गया। राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि कांग्रेस से नाता तोड़ना सबसे बड़ी भूल है। यह वही हथियार है जिसे कांग्रेस ने राहुल के मुंह से लोक सभा चुनाव में नीतीश के लिए इस्तेमाल किया था और आरजेडी की ओर जाने वाले मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा अपनी ओर टर्नअप कर लिया था। नीतीश ने उस समय सामान्य प्रतिक्रिया दी थी क्योंकि अगर कुछ प्रतिशत वोट अगर कांग्रेस को जाता है तो उनके लिए आसान ही होगा और कांग्रेस को एक ही संतोष था कि फजीहत तो हो ही चुकी है कुछ तो आ जाए। अब यही खेल रघुवंश प्र. सिंह ने किया है। वैसे जरा आरजेडी और कांग्रेस का इतिहास देखें-1997 में लालू की सरकार अल्पमत में आई उस समय कांग्रेस ने ही लालू की मदद की थी। कांग्रेस ने ही लालू की सरकार बचाई थी। उसके बाद 2000 में चुनाव हुए। आरजेडी और कांग्रेस ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर अलग अलग चुनाव प्रचार किया। सप्ताह भर के लिए नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन कांग्रेस ने समर्थन नहीं किया था। इसके बाद त्रिशंकु सरकार बनने की हालत हुई तो कोएलिशन सरकार बनी आरजेडी और कांग्रेस की मिलजुल कर। कांग्रेस ने जोरदार मलाई काटी। कांग्रेस के कुल 23 विधायक थे। जिसमें एक विधायक सदानन्द सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष पद लिया। बाकी बचे सभी 22 विधायक मंत्री बने थे। इसके बाद फिर 2005 के चुनाव के बाद नीतीश की सरकार बनी लेकिन गिर गई। कांग्रेस ने फिर से नौटंकी की जिसके चलते राष्ट्रपति शासन लगा और बूटा सिंह जिनकी लबली सिंह कथा प्रसिद्ध है, का शासन आया। अब इसके बाद लोकसभा चुनाव में चार सांसदों के साथ लालू जीते वो कोई पूर्व प्रधानमंत्री नहीं लेकिन उन्हें सदन में अगला बेंच दिया गया है। नीतीश कुमार कांग्रेस आरजेडी सांठ गाठ की बात शुरू से उछाल रहे हैं। इसबार फिर चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी अलग अलग प्रचार कर रहे हैं लेकिन रघुवंश सिंह के बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

बिहार विधानसभा चुनाव: बयानबाजी

बिहार में चुनाव सचमुच कई मायने में अहम हो चला है। राहुल गांधी ने 14 अक्टूबर को तीन सभाएं की और नीतीश पर कई सवाल दागे। इसबार राहुल के वार ओछे पड़े। बिहार में चुनावी भाषण का आधार उन्होंने मध्यप्रदेश में तैयार किया था। उन्होंने वहां अपने बयान में सिमी और संघ का मुद्दा उछाला था ताकि ये बिहार चुनाव में नेताओं के लिए मुद्दा बन जाए लेकिन ऐसा हो न सका। फिर उसी को आधार बना कर राहुल ने भी नीतीश पर नरेन्द्र मोदी को लेकर निशाना साधा। इससे पहले वे कहते रहे थे कि नीतीश का काम सही लेकिन गलत लोगों के साथ हैं। इसबार वे बोल रहे थे कि बिहार का विकास केन्द्र के पैसों की वजह से है। लालू और रामविलास ने भी कुछ हद तक संभलते हुए इस मुद्दे पर हामी तो की लेकिन अपना क्रेडिट लेकर। लेकिन 15 अक्टूबर को नीतीश ने इसका जबाव दे दिया। नीतीश ने मुख्यत दो मुद्दे उठाए। पहला कि जब जेडीयू बीजेपी सरकार बनी थी तो कुछ लोग अल्पसंख्यकों को बीजेपी के नाम से डराने का काम कर रहे थे, लेकिन इस गठबंधन में अल्पसंख्यकों के लिए जितना काम हुआ, पहले कभी नहीं हुआ। दूसरी बात थी कि बिहार को कोटे का ही पैसा मिला है अतिरिक्त कुछ नहीं। आपदाएं भी आईं फिर भी केन्द्र से अलग से कोई मदद नहीं मिली। और तो और इस बार नीतीश ने खुल कर कह दिया कि ‘दम है तो बिहार का फंड रोक कर दिखाए केन्द्र सरकार’। थोड़ा और पीछे चलते हैं। विरोधी दल साथ में राहुल भी पहले राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़ा करते थे, बाद में इस मुद्दे को छोड़ विकास कार्यों पर सवाल खड़ा करने लगे और इसबार उन्होंने नरेन्द्र मोदी का मुद्दा उठाया है। कांग्रेस के चुनाव प्रचार को जिस रूप में देखा जाय लेकिन एक बात तो साफ है कि अब भी कांग्रेस के पास बिहार में उम्मीदवार नहीं हैं जो जनता को लेकर दो कदम भी बढ़ सके। एक बात और जो नीतीश कुमार ने कहा है कि इसबार बिहार में एनडीए की सरकार बनती है तो केन्द्र में भी एनडीए की सरकार ही बनेगी। ये एक ऐसा मुद्दा दे दिया है कि जो एक भावात्मक स्थिति के रूप में ही देखी जा सकती है। ताकि ये लोग चर्चा करें वे अब राज्य में तो मान ही लें क्योंकि केन्द्र सामने रख दिया गया है। जो भी खेल दिलचस्प हो चला है।

पुण्य प्रसून ने कई बातें रख दीं

पुण्य प्रसून वाजपेयी गए ही क्यों थे वहां। हम लोगों से या किसी पटना वाले से ही पूछ लिया होता...फिर भी जो लिखा वो....बहुत खूब...। सदाकत आश्रम में 1962 में कांग्रेस का राष्टीय अधिवेशन पहली बार और अंतिम बार हुआ था। नीलम संजीव रेड्डी अध्यक्ष थे और नेहरू जी ने भाषण में चंपारण को माध्यम बनाकर गांधी जी को याद किया था। लेकिन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर चुप्पी साध रखी थी, जिन्होंने सदाकत आश्रम को आबाद किया था। इस अधिवेश के अलगे साल ही राजेन्द्र बाबू का निधन हो गया और सदाकत आश्रम में सूनापन छा गया। 2 अक्टूबर 1966 में कंक्रीट सदाकत का उद्घाटन हुआ और आश्रम दफ्तर में बदल गया। चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों को 75 लाख रुपये मिलने वाला है इसलिए उम्मीदवार भी कुछ मिल जा रहे हैं। 1921 से 2010 तक 37 अध्यक्षों के नाम लिखे हैं। 1989 से 2010 तक 21 वर्षों में 13 अध्यक्ष बने। 1921 में मजरूल हक और 90 साल बाद 2010 में महबूब अली कैसर। प्रदेश अध्यक्ष की हिम्मत नहीं कि सदाकत आश्रम में आकर बैठ जांय। किसी कांग्रेसी वरिष्ठ में हिम्मत नहीं कि जूते चप्पलों और गाली गलौज में ठहर सकें। टिकटों की मारामारी पर कांग्रेसी नेता खुशफहमी पाल रखे हैं। मनीष तिवारी ने बयान दिया था लोकप्रियता बढ़ी है। लेकिन सच क्या है वे भी समझते हैं। जनसत्ता में प्रकाशित इनका आलेख मुझे मार्मिक लगा है।