रविवार, 1 अगस्त 2010

रेलवे में भ्रष्टाचार का बोलबाला

रेलवे का मतलब भ्रष्टाचार हो गया है। स्टेशन मास्टर, टीटीई, जीआरपी, बाप रे बाप! रेलवे आम लोगों के लिए समस्या बन गई है। कई बार ऐसा लगता है कि रेल की यात्रा कहीं अंतिम यात्रा न हो जाए। अगर अंतिम यात्रा न भी हो तो वहां टीटीई नाम के यमराज आपको जरूर मिल जाएंगे। उससे भी बच निकले तो जीआरपी नाम के यमदूत से बचना मिश्किल है। इन सबकी कारगुजारियों से सभी को पाला पड़ जाता है। रिजर्वेशन नहीं है तो टीटीई छोड़ेंगे नहीं। गजब का भ्रष्टाचार है रेलवे में। प्लेटफॉर्म पर छोटी दूरी के लिए टिकट पर आरक्षण लेना हो तो आरक्षण चार्ज के अलावा टीटीई को अलग से सलामी चाहिए। वेडर्स भी परेशान हैं। उनसे पूछिए कि तुम्हारे सामान का दाम आमतौर पर दुकानों पर के दाम से डेड़ गुना क्यों है को वो यही कहेगा कि स्टेशन पर पैसे देने पड़ते हैं। आपके पास कुछ ज्यादा सामान दिख जाएं तो सुरक्षा के नाम पर जीआरपी मनमानी पर उतर जाएंगे और ठीकठाक रकम उगाह कर ही छोड़ेंगे। हां सचमुच किसी को कोई परेशानी हो जाए। बीमार पड़ जाए तो इससे इन लोगों को कोई मतलब नहीं रहता। ये सभी लोग भी उपर की दुहाई दे देते हैं कि हमें भी कहीं जमा करना पड़ता है। नए बहाल टीटीई के जलवे कुछ ज्यादा ही दिखाई देते हैं जैसे ये मान कर चल रहे हैं कि जब है जी..जी भर के पी। स्लीपर के यात्री भगवान भरोसे हैं। न तो शौचालय की हालत ठीक रहती है, न बेसिन में पानी आता है, न ही कहीं सफाई का नाम मिलता है और ना ही बर्थ सुरक्षित रहता है। जेनरल की बात तो दूर की है। एसी वाले को थोड़ी राहत है। रेलवे के कर्मचारियों में एक खास बदलाव देखने को मिल रहा है। ये लोग अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद इतने रहते हैं कि आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सवाल उठता है कि आखिर कैसे हो रही है बहाली और कौन लोग किस कटगरी के है जो ऐसे है कि उन्हें काम से लेना देना कम रह गया है।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

सही लिखा है आपने।