राजनीति के संबंध बड़े ही चर्चित होते रहे हैं। 1928-29 से ही मोतीलाल
के साथ साथ जवाहरलाल का नाम लोगों की जुबान पर चढ़ाने की कोशिश शुरू हो गई थी।
1953 में इलस्ट्रेटेड वीकली के मुख्य पृष्ठ पर भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप
में दो लोगों के चित्र छपे थे। डॉ. श्यामा
प्रसाद मुखर्जी और जय प्रकाश नारायण। हुआ कुछ और। बताया जाता है कि मृत्यु शय्या
पर जवाहरलाल ने उनके उत्ततारधिकारी के रूप में इन्दु का नाम लिया था। फिर यह क्रम
आगे चलता गया। कई लोगों ने इसे परिवारवाद का नाम दिया। अब दूसरे नेताओं में परिवार
वाद की होड़ लगी। वंशवाद की वंशी बज उठी, उन सबकी एक ही धुन थी पीओ और पीेने दो। बड़े परिवाद के सामने छोटे परिवारवाद को बड़ी जगह में जगह नहीं
मिल पायी तो राज्यों में दूसरे स्तर के नेताओं का परिवारवादी सिक्का जम गया। इसके
बाद परिवारवाद के साथ साथ भाईभतीजा वाद का दौर शुरु हो गया। दिल्ली से लेकर उत्तर
प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, दक्षिण के राज्य, महाराष्ट्र। कोई नर्मदा को नर मादा समझे
तो भी लीडर, किसी नो अनपड़ पत्नी को सीएम बना दिया वो भी लीडर। फिर बने हुए बाप के
बिगड़े बेटों का दौर भी शुरू हो गया। उपर के कई नेता इस होड़ में शामिल हुए और
नीचे के भी कई नेताओं के घर यही हाल। सभी आनन्द में थे। परिवारवाद और भाई-भतीजावाद
में मिल जुलकर बहुत कुछ कर डाला। अलग अलग नेताओं ने अवसरवाद भी दिखाया और एक दूसरे
के खिलाफ जहर भी उगला। शोर खूब मचाते थे लेकिन कार्रवाई पर चुप्पी थी। भीतरखाने
में चल रहा था-तुम खाओ हम खाएं तुम भी खुश हम भी खुश। लेकिन बीच बीच में प्रचारकी
वाला हमला हो गया। दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जो घर-बार छोड़ बिना परिवार वाले हुए। पिछले
कुछ काल खण्ड से देखने में आ रहा है। आरोपित, जमानतवाले और जेल की हवा वाले सभी
इकट्ठा होने लग जाते हैं। मौसेरे भाई। देश के पैसे की चोरी, टैक्स चोरी, राजस्व
चोरी, घोटाले, भ्रष्टाचार, आतंकवाद। अटल जी के शब्दों में कहें तो घोटाले पर
घोटाला, घटा टोप घोटाला। फिर समय ने करवट ली। तोता पिंजड़े से उड़ा, सुप्रीम कोर्ट
के कहने पर उन फलों को खोज निकाला जो निगले जा चुके थे। अतड़ियों में पड़े फलों को
ढूंढ निकाला। जब परतें खुलने लगी तो एक विशेष प्रकार की एकता देखने को मिलने लगी।
लिस्टेड एक ने दूसरे लिस्टेड का दामन थामा, कहा तुम मेरे बारे में बोलो मैं चोर
नहीं मै तुम्हारे बारे में ऐसा ही। खूब बोलो। फिर कुछ लोगों को सही, लग ही जाएगा
कि कुछ ठीक बोल ही रहे होंगे। बस फिर क्या था, मौसेरे भाई और मौसेरी बहनें लावा
भूजने को जुटने लगी, समारोह जमा कर।
संभवामि सम्भवामि sambhawaami
राजनीति शिक्षा समाजिक आर्थिक दर्शन
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019
बुधवार, 6 फ़रवरी 2019
कृपानुकम्पा
कृपानुकम्पा कारुण्यमानृशंस्यं च भारत
तथाSSर्जवं क्षमा सत्यंकुरूप्वेतद् विशिष्यते।। महाभारत. उ.
कृपा अनुकम्पा, करुणा, अनृशंसता क्षमा और सत्य।
कृपा - दूसरों को सुख पहुंचाने की सहज भावना
अनुकम्पा - दूसरों का दु:ख देखकर द्रवित होना एवं कांप उठना अनुकम्पा
करुणा- दूसरों के दुखको दूर करने का भाव
अनृशंसता - क्रूरता का सर्वता अभाव
बुधवार, 19 मार्च 2014
होलिका का पुनर्जन्म
होलिका
का पुनर्जन्म
वंश
हिरण्यकश्यप और राष्ट्रभक्त प्रह्लाद के बीच होलिका का प्रकटीकरण हुआ है। वंश
हिरण्यकश्यप ने भ्रष्टाचार,
देशद्रोह, विदेशों से दुरभिसंधि के कई आयाम जोड़
रखे हैं। जनता त्राहि त्राहि कर रही है। वह देश के धन-संपदा को शत्रु देशों में
रखता है। देश को वंश हिरण्यकश्यप ने नौकर बनाने की ठान ली है और रोजगार के नाम पर
जॉब और जॉब के नाम पर दूसरे देशों की नौकरी के लिए जनता को मजबूर कर रहा है। उसने
जनता पर इतने तरह के कर के बोझ लाद दिए हैं जो लोग की बचत खत्म हो जाय और कर के
पैसों का वह राजसी भोग विलास में उपयोग कर सके। उसकी अव्यवस्था के कारण लोगों को
खाना मिलना कठिन हो गया। ऐसी हालत में भक्त प्रह्लाद ने वंश हिरण्यकश्प की सत्ता
को चुनौती दे दी। वंश हिरण्यकश्यप ने उत्तर प्रदेश से हाथी बुलाकर उसे कुचलवाने की
कोशिश की लेकिन भक्त प्रह्लाद के साथ भगवान नर-नारायण के रूप में थे। फिर उसी
प्रदेश के रथचक्र के अभाव में द्विचक्रिका से भी दबाने की कोशिश की लेकिन उसके साथ
नर-नारायण थे। हंसिया और कचिया जैसे हथियारों का प्रयोग भी हुआ लेकिन बात नहीं
बनी। बिहार से भी कुछ योद्धाओं ने कई तरह के तीर चलाए, लेकिन फिर नर रूपी नारायण उसके साथ
हुए। हर तरफ हो रहे आक्रमण,
और हरबार नर-नारायण का साथ मिलने से
परेशान वंश हिरण्यकश्यप ने होलिका को उतारा। होलिका को सफेद कहलाने वाला चादर दिया।
होलिका ने उसे चोगा की तरह ऐसा ओढ़ लिया था जैसे वो पुरुष के रूप में दिखे। इसबार
उसने सफेद रंग की कोई टोपी भी लगा ली थी। उसने वंश हिरण्यकश्यप से अलग दिखने का
नाटक भी किया और कुछ समय तक लोगों को इस भ्रम में रखने में सफलता भी मिली। इस क्रम
में उसे भी थोड़े से प्रजाजनों का समर्थन मिल गया। इस होलिका को वे सारी देशी
विदेशी सहायता मिलने लगी जो वंश हिरण्यकश्यप को मिली थी। वंश हिरण्यकश्यप की अनीति, अत्याचार, अनाचार और पापाचार से त्रस्त लोगों को
होलिका ने समझाने का प्रयास किया कि ये उसका दूसरा जन्म है। इस जन्म में वह
हिरण्यकश्यप से दूर दूर है। विश्वास नहीं, तो देख लो मेरा वेश। लोगों को भ्रम में
डालने के लिए होलिका भी उसी तरह की जनकल्याण की बातें करने लगी जैसे भक्त प्रह्लाद
लोगों के बीच जाकर कहते और करते थे। होलिका ने भ्रम का मायाजाल फैलाया ताकि जब
प्रह्लाद पर हमला करे तो लोगों का भी कुछ समर्थन मिल जाए। सब कुछ वंश हिरण्यकश्यप
के प्लान से चल रहा था। वंश हिरण्यकश्यप और होलिका के समर्थकों ने अराजकता की आग
लगा दी। होलिका ने सफेद कहलाने वाला चादर ओढ़ रखी थी। पूरे सफेदपोश थी। लेकिन जो
हवा चल रही थी वह भक्त प्रह्लाद के पक्ष में चल रही थी। हवा ही नहीं, लोगों ने तो यहां तक कहा की आंधी चल
रही है। तभी, एक झोंके ने फैसला कर दिया कि सफेद
चादर किसके पास होना चाहिए। वह चादर भक्त प्रह्लाद के शरीर पर स्वत: आ गया। इस
पुनर्जन्म में भी होलिका जल गई। उसने हरिश्चन्द्र घाट पर अंत्येष्ठि की अंतिम
इच्छा जताई है।
बुधवार, 14 नवंबर 2012
गुरुवार, 6 सितंबर 2012
संकल्प: बच्चे भगवान का रूप होते हैं
संकल्प: बच्चे भगवान का रूप होते हैंyashwant.kundan@gmail.com
शनिवार, 18 अगस्त 2012
एक “स्मृति”
एक “स्मृति”
“स्मृति” के साथ लेखक बालमुकुन्द शर्मा
कई लोगों की आपने और हमने “स्मृति” की कहानियां सुनी और पढ़ी
होंगी। गिनी चुनी कहानियों को समेट कर लोग व्यावसायिक उद्देश्यों और साहित्यिक सेवा
के उद्देश्यों की पूर्ति के कहानी, लेख और पुस्तकें लिखते हैं, छपवाते हैं। लेकिन,
पत्रकारिता करते हुए मुझे एक ऐसे शिक्षक मिले जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपने जीवन
के शेष लम्हों को अपने को जानने की कोशिश की। शिक्षक रहते हुए उन्होंने कई पत्रकार,
डॉक्टर और इंजीनियर तो पहले ही बना दिए जो देश की सेवा में विभिन्न पदों पर लगे हुए
हैं। ये शिक्षक हैं श्री बालमुकुन्द शर्मा {रिटायर
शिक्षक, पटना हाईस्कूल, गर्दनीबाग}। इन्हें में व्यक्तिगत तौर
पर इसलिए जानता हूं कि इनसे मैंने भी शिक्षा ग्रहण है। बहरहाल, एक पत्रकार होने के
नाते अपनी गुरुदक्षिणा स्वरूप बड़े अरमान से लिखी गई पुस्तक “स्मृति” के बारे में कुछ बताना चाहता
हूं। श्री बालमुकुन्द शर्मा जी ने अपने आप को पहचानने की कोशिश की। इसके लिए यायावर
भी बने। अपनों के बीच रहते हुए उन्होंने अपने को ढूंढने की कोशिश की। जैसे सवाल ये
कि वो कौन हैं? किनके वंशज हैं? उनके वंशजों ने किया क्या? लेकिन,
इस खोज में उन्होंने अपनों को ढूंढते हुए, तत्कालीन समाजिक, आर्थिक, नैतिक, साम्प्रदायिक
और शैक्षणिक व्यवस्था का भी चित्रण अपनी पुस्तक में किया। इस पुस्तक में उन्होंने अथक
परिश्रम में न केवल शब्दों को जोड़ा बल्कि कई किस्से कहानियों को भी समाहित किया है।
जो आज की पीढ़ी के बच्चे नहीं जानते। लेकिन, वो कहानियां उनके मार्ग के प्रशस्त करने
में सक्षम हैं। उन्हें उनके उद्देश्य को बताने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
श्री शर्मा
गांव के परिवार से उठकर सामान्य और सहज जीवन जीते हुए आगे बढ़ते रहे। उसकी पूरी छवि
उनकी इस लेखनी में दिखती है। उनका बड़प्पन ये कि इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए
उन्होंने किसी प्रकाशन को नहीं दिया। बल्कि, स्वयं के खर्चे पर इसे पुस्तक का रुप देखकर
अपने पूवर्जों को समर्पित कर दिया। लेकिन, ये पुस्तक प्रकाशकों के लिए कई अहम तथ्य
सहेजे हुए हैं। फिलहाल, पाठकों को यदि ये पुस्तक चाहिए तो सीधे इनसे सम्पर्क करना होगा।
ये पुस्तक नालन्दा के नदी नालों से लेकर उसकी माटी में बसी खूशबू की महक भी समेटे हुए
है। गांव के देवालय, घर के सिराघर, गांव के देवता गोरैया बाबा समेत कई ग्रामीण परिदृश्य
का सहज चित्रण दर्शाये हुए है। हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनोखी कहानी से लेकर बच्चों
को दिशा दिखाती दादी-नानी की कहानी और उस समय से शादी ब्याह का अनुपम दृश्य सहजे हुए
है। उस पुस्तक की भूमिका के कुछ अंश आपके लिए रख रहा हूं जिससे आपको अहसास हो जाएगा
कि इस पुस्तक की कीमत क्या है ? -
“जीवन धन जैसा अमूल्य धन कोई नहीं। हर धन को संचित करने में लोग पूरा जीवन लगा देते
हैं। ऐसे में वह छूट जाता है। वंश बेल की उपज कुंभ से है और संतान के रूप में ये बेल-श्रृंखला
निरंतर बढ़ती रहती है। इस किताब का सार भी यही है और संदेश भी। भले ही स्मृति के पात्र
गांव-गिराम, बाबा-मम्मा, टोला-टाटी और सगे-संबंधियों के बताए गए किस्से कहानियों और
रूप-रेखाओं पर आधारित हैं। पर वास्तविकता के बिल्कुल करीब है। आशय ये कि ‘कुल’ जीवन के संचित धन जो अब तक छिन्न-भिन्न थे। उन्हें बटोरने की छोटी सी कोशिश की।
अपने जीवन धन को अल्पज्ञान के बूते समझने की कोशिश की। पेशे से शिक्षक होते हुए निरंतर
सवालों से जूझना फितरत रही। दूसरों को जवाब बताते-बताते अपने आप से सवाल कर बैठा और
जवाबों को ढूंढते फिरते बन गई ये किताब। संभव है कि कुछ सवालों के जवाब छूट गए हों।
हर्ष-विषाद से भले जीवन में कई रंग ऐसे हैं, जिनका मोल-महत्व पीढ़ियों तक रहता है।
पीढ़ियों का न केवल रक्त संबंध होता है बल्कि स्वभाव भी पीछा करता है। आगे की पीढी़
को ज्यादा पीछे न जाना पड़े इस लिहाज से यहां तक हमने कोशिश की। आगे की पीढ़ी इसे बढ़ाती
जाए इस उद्देश्य से अख्खड़ बोली, स्वभाव, सभ्यता-संस्कृति, पारिवारिक ताना-बाना, लोक-लाज,
दीन-धरम, ममता-वात्सल्य, मिलन-विरह, छोह-मोह, गीत-गाने हर रंग को समेट कर एक चितेरे
की भांति इसमें रंग भरने की कोशिश है। उद्देश्य आत्मसंतुष्टि
है और हां, जिस तरह हर रंग हर किसी को पसंद नहीं होता। पुरखों के कुछ रंग ऐसे भी मिले
जो भावी पीढ़ी को सीख देते है। दोष पतन का कारण है। उन्नति अच्छाई की परिणति है। उम्मीद
है कि हमारी भावी पीढ़ी कुरंगों से चेत कर आगे बढ़ेगी और कुल का आदर्श अस्तित्व अक्षुण्य
रहेगा। कुंभ रूपी अपने छोटे से जीवन काल में स्मृतियों के मंथन से कुछ जीवनधन बटोरने
की उत्कंठा यहां आकार ले रही है। “स्मृति” का इन्द्रधनुष कितना निखरा आपके सामने है।” इस पुस्तक का लोकार्पण भी उन्होंने किसी बड़े समारोह में नहीं
बल्कि गांव के लोगों के बीच “दलान” पर किया।
लोकार्पण के बाद संबोधित करते हुए लेखक बालमुकुन्द
शर्मा
आलेख – राजीव रंजन विद्यार्थी, प्रोड्यूसर सहारा समय, दिल्ली
शुक्रवार, 10 अगस्त 2012
मोबाइल से निकलेगी रोटी!
मोबाइल से निकलेगी रोटी!
क्या रोटी देगा मोबाइल...क्या भूख मिटाएगा मोबाइल...क्या प्यास बुझाएगा मोबाइल...क्या गरीबी मिटाएगा मोबाइल...भारत आज ऐसे कई सवाल कर रहा है....मोबाइल कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा ने मोबाइल को हर जरूरतमंद हाथों तक पहुंचा दिया है... रिक्शावाला भी मनरेगा में काम करने वालें मजदूरों-रिश्तेदारों से दूर देश में मोबाइल से बात करता है...तो फिर सरकार इसमें क्या करने वाली है...यूपीए सरकार ने हर हाथ को मोबाइल देने का फरमान जारी किया है... 21 वीं सदी के भारत के लोगों को सरकार ने आखिर क्या समझ लिया है...प्रधानमंत्री जी, आपकी सरकार ने लोगों को महंगाई से मार-मार कर मुआ दिया है... पेट्रोल और डीजल ने धुंआ-धुआं कर दिया है... पहले
अंग्रेज और अब अंग्रेजों के बाद भ्रष्टाचार ने गरीबों को चीथड़े ओढ़ने और बिछाने पर मजबूर कर दिया है...सरकार जी, आपके मोबाइल रूपी वोट झटकने के रिंगटोन को लोग खूब समझ रहे हैं...साहब अब जमाना गया...अब तो आज जन्म लेने वाला बच्चा भी मोबाइल के रिंगटोन और झुनझुने का फर्क जानता है... तो साहब उन बच्चों के बाप को मनमोहन सिंह जी आपका मोबाइल कितना भरमाएगा...प्रधानमंत्री जी आपका आयोग अपने लिए 34 लाख का बाथरूम बनाता है... और गरीब को 28 रुपये में पूरे परिवार को पेट भर देता है...क्या मोबाइल, मन मोह लेगा....अट्टालिकाओं और मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट में नहीं...झोपड़ियों और देश की सड़कों पर दिखती है भारत की असली तस्वीर... उस तस्वीर को क्या मोबाइल मिटा पाएगा...मोबाइल के रिंगटोन में भ्रष्टाचार को गुम करने के पीछे सोच भी बतानी होगी आपको...मोबाइल के कलर में क्या किल हो जाएगी महंगाई... मोबाइल किसानों के खेत हरे कर देगा...मोबाइल क्या रोजगार देगा...देश की धरती सोना उगलती है...हीरे मोती उगलती है...लेकिन, भ्रष्टाचार तो पूरा देश ही निगल रहा है...अनाज सड़ा दिये जाते हैं... रसोई गैस नेता जी लूट ले जाते हैं... जहां लूट की छूट है...वहां मोबाइल से वोट की लूट... ये पब्लिक है...सब जानती-समझती है...
राजीव रंजन विद्यार्थी
सदस्यता लें
संदेश (Atom)