बुधवार, 19 मार्च 2014

होलिका का पुनर्जन्म

होलिका का पुनर्जन्म


वंश हिरण्यकश्यप और राष्ट्रभक्त प्रह्लाद के बीच होलिका का प्रकटीकरण हुआ है। वंश हिरण्यकश्यप ने भ्रष्टाचार, देशद्रोह, विदेशों से दुरभिसंधि के कई आयाम जोड़ रखे हैं। जनता त्राहि त्राहि कर रही है। वह देश के धन-संपदा को शत्रु देशों में रखता है। देश को वंश हिरण्यकश्यप ने नौकर बनाने की ठान ली है और रोजगार के नाम पर जॉब और जॉब के नाम पर दूसरे देशों की नौकरी के लिए जनता को मजबूर कर रहा है। उसने जनता पर इतने तरह के कर के बोझ लाद दिए हैं जो लोग की बचत खत्म हो जाय और कर के पैसों का वह राजसी भोग विलास में उपयोग कर सके। उसकी अव्यवस्था के कारण लोगों को खाना मिलना कठिन हो गया। ऐसी हालत में भक्त प्रह्लाद ने वंश हिरण्यकश्प की सत्ता को चुनौती दे दी। वंश हिरण्यकश्यप ने उत्तर प्रदेश से हाथी बुलाकर उसे कुचलवाने की कोशिश की लेकिन भक्त प्रह्लाद के साथ भगवान नर-नारायण के रूप में थे। फिर उसी प्रदेश के रथचक्र के अभाव में द्विचक्रिका से भी दबाने की कोशिश की लेकिन उसके साथ नर-नारायण थे। हंसिया और कचिया जैसे हथियारों का प्रयोग भी हुआ लेकिन बात नहीं बनी। बिहार से भी कुछ योद्धाओं ने कई तरह के तीर चलाए, लेकिन फिर नर रूपी नारायण उसके साथ हुए। हर तरफ हो रहे आक्रमण, और हरबार नर-नारायण का साथ मिलने से परेशान वंश हिरण्यकश्यप ने होलिका को उतारा। होलिका को सफेद कहलाने वाला चादर दिया। होलिका ने उसे चोगा की तरह ऐसा ओढ़ लिया था जैसे वो पुरुष के रूप में दिखे। इसबार उसने सफेद रंग की कोई टोपी भी लगा ली थी। उसने वंश हिरण्यकश्यप से अलग दिखने का नाटक भी किया और कुछ समय तक लोगों को इस भ्रम में रखने में सफलता भी मिली। इस क्रम में उसे भी थोड़े से प्रजाजनों का समर्थन मिल गया। इस होलिका को वे सारी देशी विदेशी सहायता मिलने लगी जो वंश हिरण्यकश्यप को मिली थी। वंश हिरण्यकश्यप की अनीति, अत्याचार, अनाचार और पापाचार से त्रस्त लोगों को होलिका ने समझाने का प्रयास किया कि ये उसका दूसरा जन्म है। इस जन्म में वह हिरण्यकश्यप से दूर दूर है। विश्वास नहीं, तो देख लो मेरा वेश। लोगों को भ्रम में डालने के लिए होलिका भी उसी तरह की जनकल्याण की बातें करने लगी जैसे भक्त प्रह्लाद लोगों के बीच जाकर कहते और करते थे। होलिका ने भ्रम का मायाजाल फैलाया ताकि जब प्रह्लाद पर हमला करे तो लोगों का भी कुछ समर्थन मिल जाए। सब कुछ वंश हिरण्यकश्यप के प्लान से चल रहा था। वंश हिरण्यकश्यप और होलिका के समर्थकों ने अराजकता की आग लगा दी। होलिका ने सफेद कहलाने वाला चादर ओढ़ रखी थी। पूरे सफेदपोश थी। लेकिन जो हवा चल रही थी वह भक्त प्रह्लाद के पक्ष में चल रही थी। हवा ही नहीं, लोगों ने तो यहां तक कहा की आंधी चल रही है। तभी, एक झोंके ने फैसला कर दिया कि सफेद चादर किसके पास होना चाहिए। वह चादर भक्त प्रह्लाद के शरीर पर स्वत: आ गया। इस पुनर्जन्म में भी होलिका जल गई। उसने हरिश्चन्द्र घाट पर अंत्येष्ठि की अंतिम इच्छा जताई है।

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