बुधवार, 14 नवंबर 2012

बच्चों ने मनाई ऐसे दिवाली


गुरुवार, 6 सितंबर 2012

संकल्‍प: बच्‍चे भगवान का रूप होते हैं

संकल्‍प: बच्‍चे भगवान का रूप होते हैंyashwant.kundan@gmail.com

शनिवार, 18 अगस्त 2012

एक “स्मृति”



                                 एक स्मृति



       स्मृति के साथ लेखक बालमुकुन्द शर्मा
कई लोगों की आपने और हमने स्मृति की कहानियां सुनी और पढ़ी होंगी। गिनी चुनी कहानियों को समेट कर लोग व्यावसायिक उद्देश्यों और साहित्यिक सेवा के उद्देश्यों की पूर्ति के कहानी, लेख और पुस्तकें लिखते हैं, छपवाते हैं। लेकिन, पत्रकारिता करते हुए मुझे एक ऐसे शिक्षक मिले जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपने जीवन के शेष लम्हों को अपने को जानने की कोशिश की। शिक्षक रहते हुए उन्होंने कई पत्रकार, डॉक्टर और इंजीनियर तो पहले ही बना दिए जो देश की सेवा में विभिन्न पदों पर लगे हुए हैं। ये शिक्षक हैं श्री बालमुकुन्द शर्मा {रिटायर शिक्षक, पटना हाईस्कूल, गर्दनीबाग}। इन्हें में व्यक्तिगत तौर पर इसलिए जानता हूं कि इनसे मैंने भी शिक्षा ग्रहण है। बहरहाल, एक पत्रकार होने के नाते अपनी गुरुदक्षिणा स्वरूप बड़े अरमान से लिखी गई पुस्तक स्मृति के बारे में कुछ बताना चाहता हूं। श्री बालमुकुन्द शर्मा जी ने अपने आप को पहचानने की कोशिश की। इसके लिए यायावर भी बने। अपनों के बीच रहते हुए उन्होंने अपने को ढूंढने की कोशिश की। जैसे सवाल ये कि वो कौन हैं? किनके वंशज हैं? उनके वंशजों ने किया क्या? लेकिन, इस खोज में उन्होंने अपनों को ढूंढते हुए, तत्कालीन समाजिक, आर्थिक, नैतिक, साम्प्रदायिक और शैक्षणिक व्यवस्था का भी चित्रण अपनी पुस्तक में किया। इस पुस्तक में उन्होंने अथक परिश्रम में न केवल शब्दों को जोड़ा बल्कि कई किस्से कहानियों को भी समाहित किया है। जो आज की पीढ़ी के बच्चे नहीं जानते। लेकिन, वो कहानियां उनके मार्ग के प्रशस्त करने में सक्षम हैं। उन्हें उनके उद्देश्य को बताने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
      श्री शर्मा गांव के परिवार से उठकर सामान्य और सहज जीवन जीते हुए आगे बढ़ते रहे। उसकी पूरी छवि उनकी इस लेखनी में दिखती है। उनका बड़प्पन ये कि इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए उन्होंने किसी प्रकाशन को नहीं दिया। बल्कि, स्वयं के खर्चे पर इसे पुस्तक का रुप देखकर अपने पूवर्जों को समर्पित कर दिया। लेकिन, ये पुस्तक प्रकाशकों के लिए कई अहम तथ्य सहेजे हुए हैं। फिलहाल, पाठकों को यदि ये पुस्तक चाहिए तो सीधे इनसे सम्पर्क करना होगा। ये पुस्तक नालन्दा के नदी नालों से लेकर उसकी माटी में बसी खूशबू की महक भी समेटे हुए है। गांव के देवालय, घर के सिराघर, गांव के देवता गोरैया बाबा समेत कई ग्रामीण परिदृश्य का सहज चित्रण दर्शाये हुए है। हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनोखी कहानी से लेकर बच्चों को दिशा दिखाती दादी-नानी की कहानी और उस समय से शादी ब्याह का अनुपम दृश्य सहजे हुए है। उस पुस्तक की भूमिका के कुछ अंश आपके लिए रख रहा हूं जिससे आपको अहसास हो जाएगा कि इस पुस्तक की कीमत क्या है ?  -

जीवन धन जैसा अमूल्य धन कोई नहीं। हर धन को संचित करने में लोग पूरा जीवन लगा देते हैं। ऐसे में वह छूट जाता है। वंश बेल की उपज कुंभ से है और संतान के रूप में ये बेल-श्रृंखला निरंतर बढ़ती रहती है। इस किताब का सार भी यही है और संदेश भी। भले ही स्मृति के पात्र गांव-गिराम, बाबा-मम्मा, टोला-टाटी और सगे-संबंधियों के बताए गए किस्से कहानियों और रूप-रेखाओं पर आधारित हैं। पर वास्तविकता के बिल्कुल करीब है। आशय ये कि कुल जीवन के संचित धन जो अब तक छिन्न-भिन्न थे। उन्हें बटोरने की छोटी सी कोशिश की। अपने जीवन धन को अल्पज्ञान के बूते समझने की कोशिश की। पेशे से शिक्षक होते हुए निरंतर सवालों से जूझना फितरत रही। दूसरों को जवाब बताते-बताते अपने आप से सवाल कर बैठा और जवाबों को ढूंढते फिरते बन गई ये किताब। संभव है कि कुछ सवालों के जवाब छूट गए हों। हर्ष-विषाद से भले जीवन में कई रंग ऐसे हैं, जिनका मोल-महत्व पीढ़ियों तक रहता है। पीढ़ियों का न केवल रक्त संबंध होता है बल्कि स्वभाव भी पीछा करता है। आगे की पीढी़ को ज्यादा पीछे न जाना पड़े इस लिहाज से यहां तक हमने कोशिश की। आगे की पीढ़ी इसे बढ़ाती जाए इस उद्देश्य से अख्खड़ बोली, स्वभाव, सभ्यता-संस्कृति, पारिवारिक ताना-बाना, लोक-लाज, दीन-धरम, ममता-वात्सल्य, मिलन-विरह, छोह-मोह, गीत-गाने हर रंग को समेट कर एक चितेरे की भांति इसमें रंग भरने की कोशिश है।  उद्देश्य आत्मसंतुष्टि है और हां, जिस तरह हर रंग हर किसी को पसंद नहीं होता। पुरखों के कुछ रंग ऐसे भी मिले जो भावी पीढ़ी को सीख देते है। दोष पतन का कारण है। उन्नति अच्छाई की परिणति है। उम्मीद है कि हमारी भावी पीढ़ी कुरंगों से चेत कर आगे बढ़ेगी और कुल का आदर्श अस्तित्व अक्षुण्य रहेगा। कुंभ रूपी अपने छोटे से जीवन काल में स्मृतियों के मंथन से कुछ जीवनधन बटोरने की उत्कंठा यहां आकार ले रही है। स्मृति का इन्द्रधनुष कितना निखरा  आपके सामने है। इस पुस्तक का लोकार्पण भी उन्होंने किसी बड़े समारोह में नहीं बल्कि गांव के लोगों के बीच दलान पर किया।                                                         
     लोकार्पण के बाद संबोधित करते हुए लेखक बालमुकुन्द शर्मा
आलेख राजीव रंजन विद्यार्थी, प्रोड्यूसर सहारा समय, दिल्ली

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

मोबाइल से निकलेगी रोटी!


   मोबाइल से निकलेगी रोटी!
क्या रोटी देगा मोबाइल...क्या भूख मिटाएगा मोबाइल...क्या प्यास बुझाएगा मोबाइल...क्या गरीबी मिटाएगा मोबाइल...भारत आज ऐसे कई सवाल कर रहा है....मोबाइल कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा ने मोबाइल को हर जरूरतमंद हाथों तक पहुंचा दिया है... रिक्शावाला भी मनरेगा में काम करने वालें मजदूरों-रिश्तेदारों से दूर देश में मोबाइल से बात करता है...तो फिर सरकार इसमें क्या करने वाली है...यूपीए सरकार ने हर हाथ को मोबाइल देने का फरमान जारी किया है... 21 वीं सदी के भारत के लोगों को सरकार ने आखिर क्या समझ लिया है...प्रधानमंत्री जी, आपकी सरकार ने लोगों को महंगाई से मार-मार कर मुआ दिया है... पेट्रोल और डीजल ने धुंआ-धुआं कर दिया है... पहले अंग्रेज और अब अंग्रेजों के बाद भ्रष्टाचार ने गरीबों को चीथड़े ओढ़ने और बिछाने पर मजबूर कर दिया है...सरकार जी, आपके मोबाइल रूपी वोट झटकने के रिंगटोन को लोग खूब समझ रहे हैं...साहब अब जमाना गया...अब तो आज जन्म लेने वाला बच्चा भी मोबाइल के रिंगटोन और झुनझुने का फर्क जानता है... तो साहब उन बच्चों के बाप को मनमोहन सिंह जी आपका मोबाइल कितना भरमाएगा...प्रधानमंत्री जी आपका आयोग अपने लिए 34 लाख का बाथरूम बनाता है... और गरीब को 28 रुपये में पूरे परिवार को पेट भर देता है...क्या मोबाइल, मन मोह लेगा....अट्टालिकाओं और मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट में नहीं...झोपड़ियों और देश की सड़कों पर दिखती है भारत की असली तस्वीर...  उस तस्वीर को क्या मोबाइल मिटा पाएगा...मोबाइल के रिंगटोन में भ्रष्टाचार को गुम करने के पीछे सोच भी बतानी होगी आपको...मोबाइल के कलर में क्या किल हो जाएगी महंगाई... मोबाइल किसानों के खेत हरे कर देगा...मोबाइल क्या रोजगार देगा...देश की धरती सोना उगलती है...हीरे मोती उगलती है...लेकिन, भ्रष्टाचार तो पूरा देश ही निगल रहा है...अनाज सड़ा दिये जाते हैं... रसोई गैस नेता जी लूट ले जाते हैं... जहां लूट की छूट है...वहां मोबाइल से वोट की लूट... ये पब्लिक है...सब जानती-समझती है...

 राजीव रंजन विद्यार्थी