शनिवार, 24 जुलाई 2010

अब क्या सोचना भी लाजमी नहीं?

जनता को क्या चाहिए? मेरे मन में एक अजीब सा सवाल उठ रहा है। अगर कहें कि जनता को तो बस सुख चैन चाहिए तो यह बात पूरी तरह से सही नहीं लगती। वरना उन्हें चैन की बातों क्यों नहीं अच्छी लगती। बेचैन करने वाले लोग सदन तक कैसे पहुंच रहे हैं। मुद्दों के जोर पर कैसे जनता दिशा बदल लेती है या फिर सीधे शब्दों में कहें तो दिशाहीन हो जा रही है। लालू-पासवान के बंद में बिहार में खूब गुंडागर्दी हुई। फिर विधानसभा में लोकतंत्र को शर्मसार करने की घटना हुई। कांग्रेस वाले सोलंकी के साथ भी उस दिन चुप रहे जब बंद के नाम पर सरेआम गुंडागर्दी हो रही थी, अब राज्य सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। महंगाई के बारे में ये लोग कुछ नहीं बोलते। अमेरिका की आर्थिक नीतियां देश में हावी होती जा रही हैं। खाद और डीजल पर इनकी मजबूरी है। सज्जन और टाइटलर को सीबीआई क्लीन चिट देकर नए सिरे से अमित शाह के पीछे लगी है, इसमें भी कुछ वैसा ही होगा। बोफोर्स और गैसकांड तिलहंडे में चला गया। सीमा पर हलचल है कश्मीर का जलना जारी है। आतंकी सिर उठा रहे हैं। नेता जी मुद्दे को डायवर्ट करने की राजनीति कर रहे हैं। इन्हें शिक्षा से कितना लेना देना है सभी जानते हैं लेकिन शिक्षा नीति यही लोग निर्धारित करते हैं। इन सबका व्यक्तिगत जीवन कैसा इस बात को लोग जानते हैं लेकिन चुनाव आते आते इनकी ही बातें जनता के सिर पर चढ़ कर कैसे बोलने लगती है। जनता इनकी बातों में बार बार क्यों आ जाती है।

रविवार, 11 जुलाई 2010

प्रधनमंत्री पद के लिए गीता की शपथ

प्रधानमंत्री के पद और गोपनीयता की शपत लेने के लिए हाथ में गीता भी रखी जा सकती है, ऐसा सोचना थोड़ा कठिन हो चला है लेकिन त्रिनिनाद टोबैगो के की पहली नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने अपने पद की शपथ हाथ में गीता लेकर ली। 26 जून को नोस्ली (पोर्ट ऑफ स्पेन) में एक समारोह में देश के राष्ट्रपति श्री जार्ज मैक्सवेल रिचर्ड ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। दुनियां के लिए यह एक अनोखी घटना है। अबतक गीता अथवा किसी भी भारतीय दर्शन से जुड़ी पुस्तकों को दूसरे अथवा दूसरे देशों के रिलीजियश बुक्स के रूप में देखा जाता रहा, जिसमें उस किताब को भी सबसे अच्छा और श्रेष्ठ बताया गया और उसमें वर्णित परमशक्ति ही उसी नाम से सबसे श्रेष्ट होते हैं लेकिन भारतीय धर्मग्रंथ या दर्शन में ईश्वर के सभी रूपों को परमशक्ति, परमसत्ता, भगवान यहां तक कि कण कण में विराजने वाला बताया है। जरूरत है निर्विकार रूप से इन्हें देखने की।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

अब कौन करेगा सन थेरेपी

बिहार के बांका जिले के धोरैया-भगवानपुर में सन थेरेपी देखने को मिला था। सैकड़ों नहीं हजारों लोगों का मुफ्त इलाज, वो भी लीवर का, होते हुए इस इलाके के प्राय: सभी लोगों ने देखा। उगते सूरज के साथ कच्चा धागा और तांत लेकर सूजे हुए लीवर और वहां त्वचा के भीतर से साफ साफ दिखाई देने वाले नीले रंग के हो चुके नस और शिराओँ को महज 21 दिनों में ठीक कर, इतना ही नहीं कई बार तो खाट पर पड़े रोगियों को 21 दिनों के भीतर उठा कर दौड़ा देने की कूवत रखने वाले जगदीश मिश्र की कीर्ति को लोगों ने काफी नजदीक से या ऐसे कहें कि सबकुछ सामने साफ साफ देखा। आमतौर पर हरेक रविवार की सुबह देखा। अब वो जगदीश मिश्र संसार में नहीं रहे। 106 वर्ष की आयु में चलते फिरते जगदीश मिश्र ने 06जुलाई10 मंगलवार की सुबह अपना शरीर त्याग दिया। इलाके में उन्हें कोई ज्योतिषी और कोई तांत्रिक के रूप में जानते थे। हालांकि उनकी पढ़ाई कम हुई थी लेकिन शास्त्रों के जानकार के रूप में उनकी पहचान थी। आज भले ही कई रोगों के लिए सन थेरेपी प्रचलित हो रहा हो लेकिन जिसने उन्हें जब से देखा उसने उनके पास इस विद्या को जरूर देखा। यह एक परंपरागत शिक्षण रहा होगा। अब यह प्रक्रिया कहीं भी देखने या सुनने को नहीं मिलती। इससे भी खास बात एक और कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए वे एक संन्यासी थे। जिनलोगों ने उनका जीवन पास से देखा है वो जानते हैं कि कभी एक पैसा उन्होंने जमा नहीं किया। न तो उनका कोई बक्सा है और न ही कोई थैला जिसमें देहावसान के बाद कोई विरासत ढूंढ सके। मुटठी बांध कर आये थे खुले हाथ चल दिए। ये संदेश दूसरों को भी देते थे लेकिन उपदेश से ज्यादा अपने आचरण से। मन से हठी, हृदय से धनी, समाज के लिए योद्धा के रूप में, खेतों में पूरे किसान, स्वभाव से ज्ञानी और आध्यात्मिक-ऐसे थे जगदीश मिश्र।

सोमवार, 5 जुलाई 2010

भारत बंद रहा, जेडीयू क्यों खुल गए

महंगाई के मुद्दे पर भारत बंद रहा। लंबे समय के बाद एक बड़ा आन्दोलन देखने को मिला। बस सेवा, रेल रेवा यहां तक कि वायु सेवा भी जोरदार प्रभावित हुई, जिससे लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। हालांकि ज्यादातर लोगों ने अपनी यात्रा पहले से नहीं करने की तैयारी कर ली थी। लोग खुद ही नहीं निकले। इस दौरान बिहार में फिर से नरेन्द्र मोदी के नाम पर राजनीति का मामला उठा। जेडीयू सांसद मोनाजिर हसन से नरेन्द्र मोदी पर टिप्पणी कर दी। इसके कई पहलुओं पर गौर करने की जरुरत है। मोनाजिर ने इसलिए मामला नहीं उठाया कि उन्हें नरेन्द्र मोदी से कुछ लेना देना है, बल्कि इसलिए उठाया कि तसलीमुद्दीन जेडीयू में शामिल हो गए हैं। ऐसे में बिहार में और सत्तारूढ़ दल में मुसलमानों का नेता कौन कहलाए? नीतीश पर मोनाजिर जिन कारणों से दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं उसमें सेंध लगने की पूरे हालत खड़े हो गए हैं। तसलीमुद्दीन के जेडीयू में आने भर से लालू को झटका तो लगा ही है कांग्रेस के लिए भी झटका ही है। इतना ही नहीं नीतीश के साथ मोनाजिर की दूरी कभी चर्चा में थी, उसे बढ़ाने या पाटने की अब जरूरत नहीं लग रही है, इसलिए मोनाजिर की यह राजनीतिक मजबूरी थी कि नरेन्द्र मोदी को ही हथियार बनाया जाए। फिर भी, नरेन्द्र मोदी पर मोनाजिर के बयान को कई रूप में और संकेत में देखने की जरूरत है। क्योंकि, कांग्रेस लगातार बिहार में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।