रविवार, 1 मार्च 2009

अब जरा सोच कर होलिका पहचानें

फिर आ गई होली। तो फिऱ जरा पहचान लें होलिका को...हिरण्यकश्यप सात समुद्दर पार बैठा हुआ है भाई....ईशारे उसके चलते हैं और काम होता है अपने घऱ परिवार और समाज में....इस पर्व के बाद एक महापर्व भी आने वाला है...वह है लोकतंत्र का महापर्व....होलिका का असली खेल वहीं पता चलेगा....अब तक तो छोटे छोटे खेल धूप से उसने लिंक जोड़ो अभियान चला रखा है....अब महालिंक का खेल करने की तैयारी है...इस लिए इसबार का होलिका दहन साधारम नहीं...अब नींद में होलिका जलाने से काम नहीं चलेगा।

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